नवरात्रि: नवदुर्गा: मां का दूसरा रूप
नवरात्रि के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी रुप की पूजा होती है।
पर्वत राज हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लेने के बाद मां ने पुनः शिवजी को ही पति रूप में चुना। शिवजी को पति रूप में पाने के लिए माता ने कठिनतम तपस्या की। जंगल में जाकर केवल फलाहार करके वषों तपस्या की। फिर ३००० वर्षों तक केवल सूखे पत्ते खाकर कठिनतम तपस्या की इतनी कठिन तपस्या करने के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करने से मनुष्य को तपस्या, त्याग, वैराग्य, सदाचार, सफलता संयम और विजय कीप्राप्ति होती है । इनकी कृपा से जीवन में आने वाली अनेक परेशानियां समाप्त हो जाती हैं
माता ब्रह्मचारिणी के दांए हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडल है। इनकी पूजा में सफेद हरे या लाल वस्त्र धारण किए जाते हैं
मां ब्रह्मचारिणी को शेवंती और गुलदावदी के
पुष्प अर्पित किए जाते हैं। माता ब्रह्मचारिणी को वटवृक्ष के पत्ते या इन पत्तों की माला चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है।
मां ब्रह्मचारिणी को चीनी,मिश्री, पंचामृत, दूध और दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना से मां प्रसन्न होती हैं। अपने भक्तों को
आरोग्य का वरदान देती हैं
जय माता दी
© सरिता अग्रवाल
#maa
#jaimatadi
#Navratri
पर्वत राज हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लेने के बाद मां ने पुनः शिवजी को ही पति रूप में चुना। शिवजी को पति रूप में पाने के लिए माता ने कठिनतम तपस्या की। जंगल में जाकर केवल फलाहार करके वषों तपस्या की। फिर ३००० वर्षों तक केवल सूखे पत्ते खाकर कठिनतम तपस्या की इतनी कठिन तपस्या करने के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करने से मनुष्य को तपस्या, त्याग, वैराग्य, सदाचार, सफलता संयम और विजय कीप्राप्ति होती है । इनकी कृपा से जीवन में आने वाली अनेक परेशानियां समाप्त हो जाती हैं
माता ब्रह्मचारिणी के दांए हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडल है। इनकी पूजा में सफेद हरे या लाल वस्त्र धारण किए जाते हैं
मां ब्रह्मचारिणी को शेवंती और गुलदावदी के
पुष्प अर्पित किए जाते हैं। माता ब्रह्मचारिणी को वटवृक्ष के पत्ते या इन पत्तों की माला चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है।
मां ब्रह्मचारिणी को चीनी,मिश्री, पंचामृत, दूध और दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना से मां प्रसन्न होती हैं। अपने भक्तों को
आरोग्य का वरदान देती हैं
जय माता दी
© सरिता अग्रवाल
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