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सौभाग्यशालिनी मैं.....🙏
सौभाग्यशालिनी
"लो, तुम्हारी मेहनत का ईनाम आखिर मिल ही गया!” कहते हुए मेरे पति, सुनील, भावुक हो उठे।
मैं स्तब्ध रह गई क्योंकि परिणाम में देर होने के कारण मेरा स्वयं पर से विश्वास डगमगा गया था, मगर सुनील को मुझमें पूरा विश्वास था। उन्होंने मुझे लिफाफा मेरी ओर बढ़ाया तो मैंने एकांत का पूरा लाभ उठाते हुए उन्हें अपनी बांहों में ले लिया।
“ये आपके त्याग, समझ और मेरे लिए आपके सच्चे प्रेम का परिणाम है,” मेरी आँखों के आँसू उनकी कमीज भिगोने लगे।
उनकी बाँहों में सिमटी तो जीवन की तमाम घटनाएं चलचित्र की तरह मेरी आँखों के सामने घूमने लगीं...
मैं बिना माँ-बाप की आठवीं फेल लड़की थी, मेरी शादी चाचाजी ने एक शिक्षित परिवार में कर दी थी, जिन्हें घर में बहू नहीं, नौकरानी चाहिए थी। घर के हर काम में मुझे ही झौंके रखा जाता और रोज ही अपमानित किया जाता। गाँव की मेरी बोली, आठवीं फेल का तमगा एक दूसरे पर उछाल कर मज़ाक उड़ाया जाता और शांत स्वभाव के मेरे पति, सुनील, मुझे दिलासा देकर समझाते। मैं इसे अपनी अच्छी किस्मत मानती कि मेरे पति बहुत समझदार और एक कंपनी में एकाउंटेंट थे।
फिर सुनील के छोटे भाई की पढ़ी-लिखी और दहेज लाने वाली पत्नी के आने के बाद रूढ़िवादी परिवार में मेरी दुर्गति और भी ज्यादा हो गई। यह देख कर तो अब सुनील भी अत्यंत उद्धिग्न हो जाते और उन्हें इस दशा में देख कर मैं अंदर से रो पड़ती। यही वह समय था जब मैं अशिक्षा के अभिशाप को अपनी नियति मानने ही वाली...