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उपहार
लीला एक मध्यम वर्गी परिवार से थी , उसकी बहू सुशीला जिसे कुछ ही महीने हुए थे ब्याह कर आए हुए । सुशीला जो की एक आधुनिक जमाने की सोच रखने वाली आधुनिक लड़की थी। उसे अपने इस नए घर के तौर तरीके नहीं आते थे , फिर भी वह कोशिश करती है अपने आप को उसके अनुसार ढलने की। लीला जो की सुशीला की सास है , सुशीला को कुछ खास पसंद नहीं करती थी उसका कारण भी था वो यह था की सुशीला हर सवाल में तर्क करने लग जाती थी , जो की लीला को बिलकुल पसंद नहीं था। एक बार ऐसे ही लीला ने सुशीला से कहा बहु लल्ला के लिए तुलसी वाला चाय बना दे , पर मां जी तुलसी वाला बनाने की क्या जरूरत है आज कल तो चायपत्ती में भी ये सारी चीज़े डली होती है , लीला गुस्से से कहती है ठीक है तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर ।

वैसे तो लीला को कोई शिकायत ना थी अपने बहु से फिर भी कुछ चिढ़ी चिढ़ी सी रहती थी उससे हर काम में उसे डांटती थी
बहु ये क्या है तूने ठीक से झाडू नहीं लगाया है , शाम हो गई है छत से कपड़े नहीं निकाले है और भी बहुत कुछ कहती थी । लेकिन सुशीला ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया हा अक्सर वह तर्क किया करती थी लेकिन कभी कुछ अपशब्द नहीं कहा किसी को ।

एक दिन लीला घर से बाहर जाती है जाने से पहले वह अपने बहु को कह कर जाती है बहु छत पर मिर्च और पापड़ सुख रहे है शाम होने से पहले निकाल लेना मौसम भी आज कुछ ठीक नहीं है कभी भी बारिश हो सकती है ध्यान रखना । सुशीला जी मां जी मैं समय से सब कर लूंगी ।
सुशीला घर का सारा काम खत्म करके अपना स्वेटर बुनने का काम खत्म करने में लग जाती है जो वह कुछ हफ्तों से बना रही थी आज पूरा होने वाला था । इसे बनाने के चक्कर में वह छत से मिर्च और पापड़ निकलना भूल जाती है , और कुछ ही देर बाद जोरो की बारिश होने लगती है तब भी उसे याद नहीं आता की ऊपर कुछ सूख रहा है , बारिश शाम को रुकती है लीला 7 बजे तक घर पहुंच जाती है उस वक्त सुशीला रसोई में होती है रात का भोजन तैयार कर रही होती है , कुछ देर बाद खाना बन जाता है और सभी खाने के लिए बैठ जाते है , जैसे ही खाना खत्म होता है लीला को याद आता है की वह पूछना तो भूल ही गई थी , बहु तूने छत से सारे मिर्च और पापड़ निकाल लिए है ना , सुशीला अरे! मां जी मां जी वो वो वो .... क्या हुआ बहु जवाब दे , मां जी वो मैं छत से मिर्च और पापड़ निकलना भूल गई थी । लीला क्रोधित हो जाती है और चिल्लाने लगती है ।
तुझे कितनी बार कहा है थोड़ा ध्यान दिया कर काम में पता नहीं किस ख्यालों में खोई रहती है , आखिर सब खराब हो गया ना जा सब को अब फेक आ नई तो वही सड़ने लगेंगे । सुशीला कुछ नई कहती है और चली जाती है , लीला कुछ देर बाद सोचती है अरे मैने आज बहु को बहुत ज्यादा डांट दिया उसे कितना बुरा लगा होगा ।
अगली सुबह सब रोज की तरह नॉर्मल होता है , सुशीला अपने काम में व्यस्थ आज कुछ खास डिशेस बनाती है , जिसमें लगभग लीला की पसंद की बनी होती है । लीला को कुछ समझ नहीं आता वह अपने किए पर शर्मिंदा होती है की मैं बहु को कितना डांटा ।
खाना खाने के बाद लीला अपने कमरे में चली जाती है ।

कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है लीला - कौन है , मां जी मैं हूं सुशीला अंदर आजा बहु , जी मां जी यह कह कर वह अंदर आती है, लीला उठती है और कहती है बहु तू कल की बात से नाराज तो नहीं हैं ना, मां जी वो सब छोड़िए और यहां आइए कहकर लीला को शीशे के सामने बिठाती है और अपने हाथों से बनाया हुआ स्वेटर उसे पहनाती है और कहती है "happy mother's day " मां जी मैं आप से बिल्कुल भी नाराज नहीं हूं आप तो मेरी मां हैं ना भला मैं आपसे नाराज कैसे हो सकती हूं ।
यह कहने के बाद सुशीला लीला से पूछती है कैसा है उपहार मां जी लीला के तो आंखो से आंसू (खुशी के) आ जाते है । वह गले लगते हुए कहती है

" मेरा सबसे कीमती उपहार तो तू है बहु , मैने बहु के रूप में बेटी पाया है । "

जरूरी नहीं उपहार सदैव कोई वस्तु हो , वह प्रेम भी हो सकता है । प्रेम से बड़ा और कोई उपहार नहीं क्योंकि जो प्रेम में आनंद , शांति , सुकून मिलता है वह किसी वस्तु से प्राप्त नहीं हो सकता ।


-tj dhruw