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दहक 💔
बेटी का रिश्ता टूटता है तो माता पिता पर क्या बीतती है इसका अंदाजा सिर्फ कोई मां बाप ही लगा सकता है, ऐसा ही हुआ था उस वक्त जब रागिनी का रिश्ता टूटा था उस वक्त तो वह भी न थी घर में कालेज गई थी। आते ही पता चला कि उसका रिश्ता टूट गया है, कहीं मां तो कहीं पापा उदास, ख़ामोश बैठे थे। रागिनी उनकी इकलौती संतान थी, मां पापा उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं सुन सकते थे। उसे देख मां ने माहौल का रूख़ बदलने की कोशिश की " क्या हुआ, बेटा?"
" नहीं कुछ नहीं....." बात अधूरी छोड़ रागिनी अपने कमरे में चली गई। मां को एहसास हो गया कि शायद उसे बात की भनक लग गई, अब बात और ना बिगड़ जाए यह सोच वह पति से बोली " आप धीरज न खोयें, आज हमारी बिटिया के इम्तिहान का परिणाम आया है हमेशा की तरह वो इस बार भी अव्वल होगी, उसे हमारी जरूरत है।"
"क्या कहूंगा जाकर उससे, क्या ये कहूंगा कि बेटा तेरा रिश्ता टूट गया या फिर जाकर एक लाचार बाप की तरह उसके सामने खड़ा हो जाऊंगा?"
" उसे ये बात बतानी तो पड़ेगी न, अभी न तो कभी और सही इसलिए मैं खुद उसे सबकुछ बताऊंगी " कहते हुए निर्मला रागिनी के कमरे की तरफ गई। " रिजल्ट आया अच्छी खबर नहीं सुनाई तुमने"
" फेल हो गई मैं, मां" थोड़ी देर बाद फिर कही " फेल हो गई मै एक अच्छी बेटी बनने में पास नहीं हो पाई, क्या ग़लती हो गई मुझसे मां "
" ये क्या कह रही है बेटा, कुछ भी बकती है " बनावटी गुस्से से निर्मला बोली।
" सही तो कह रही हूं, एक अच्छी बेटी होती तो आप मुझसे नज़रें नहीं चुराती , आंखें मिलाकर मुझे बतातीं कि वो रिश्ता टूट गया लेकिन आप...." कहते कहते रागिनी चुप हो गई।
" ऐसा नहीं है बेटा, दुःख तो इस बात का है कि वो घर, परिवार अच्छा था। निखिल तेरा दोस्त था सोचा था निखिल से तेरा ब्याह कर देंगे वो तुम्हें खुश रखेगा, लड़का बेहद अच्छा था।" निर्मला अपनी बात रखी।
" तो फिर रिश्ता क्यों टूट गया, सब तो अच्छा ही था घर परिवार, निखिल, सब अच्छा था न फिर क्या हो गया?" रागिनी बरस पड़ी।
" वो निखिल के पिता जी की दहेज की लम्बी लिस्ट थी। तेरे पापा की हैसियत नहीं इतनी , बेटा वो नहीं दे पाएंगे इतना...." निर्मला की आंखों में आंसू आ गए।
" मां दहेज उसके पापा को चाहिए था अगर निखिल चाहता तो मना कर सकता था, अपने पापा को समझा सकता था पर नहीं बोला वो कुछ इसलिए इस बात को यहीं खत्म कर दो दहेज के लोभियों को अपनी बेटी मत देना " दोनों मां बेटी एक दूसरे को समझा रही थी। दोनों ने तय किया कि आगे से वो निखिल से दूर रहेगी धीरे धीरे वक्त भी बीतता गया फिर एक दिन निखिल आया वो बहुत कोशिश किया कि रागिनी से बात कर सके पर उसकी किसी ने एक न सुनी उदास निखिल ना चाहते हुए भी फिर कभी रागिनी से बात कर लेगा ये सोच वापस घर लौट गया।
रागिनी के परिवार के लिए ये अच्छी बात नहीं थी कि बेटी का रिश्ता टूट गया था वो कोई अच्छा लड़का देखकर रागिनी का शादी जल्दी कर देना चाहते थे। उनके किसी रिश्तेदार ने रागिनी का रिश्ता कराया। एक बड़े घर परिवार जिसका समाज में ऊंचा नाम था पैसा रूतबा किसी चीज की कोई कमी नहीं थी और तो और बिना दहेज की शादी हुई थी। यक़ीनन रागिनी भी खुश थी। उसकी शादी हो गई और वो वक्त के साथ निखिल को भूलने लगी थी। शादी के बाद वो मेरठ में आ गई थी यहीं उसके पति की नौकरी थी अपने खुशहाल जीवन में वो रमने लगी थी। अचानक इक शाम को राकेश रागिनी का पति अपने साथ निखिल को घर लेकर आया निखिल को देखते ही रागिनी को सब याद आ गया वो बहुत मुश्किल से खुद को संभाल रही थी। पर दिल तो निखिल का टूट गया रागिनी को किसी और का हुआ देखकर वो तुरंत ही जाने को उठा तभी रागिनी बोल पड़ी," रूको! रूकोगे नहीं, चाय तो पी लो"
निखिल उसकी आग्रह करने पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में रागिनी चाय लेकर आई। पति के सामने वो निखिल से उसका हाल चाल भी न पूछ सकी जैसे तैसे खुद को संभालती रही आंखों में आंसू, होंठों पर अनकहे लफ्ज़ ठहरे रहे। तभी राकेश और निखिल वापस जाने को उठे। रागिनी उन्हें छोड़ने दरवाजे तक आई और निखिल को वापस रात के खाने पर आमंत्रित की " निखिल आप आइएगा मैं और राकेश आपका इंतजार करेंगे"
" जब करना चाहिए था तब तो किया नहीं, अब क्या इंतजार करना खुश रहना हमेशा..." निखिल धीरे से कहा पर रागिनी सुन ली जिसे सुनकर वो भी अपने आंसू न रोक सकी। निखिल अपना टूटा दिल, दहकते जज्बात अपने सीने में दफन किये चला गया।‌ रागिनी वहीं खड़ी उसे दूर तक जाता देखती रही।।
Ruchi Arun...✍️✍️

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