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हमारे दरमियां भी कोई था
17 दिसंबर अर्चु के जन्म की तारीख जिसे हमेशा कोसती थी अर्चु मगर इस बार वो बहुत खुश थी की वो अपने पहले प्यार से मिलने जा रही थी।
वो जब भी मिलते जगह हमेशा किसी न किसी भगवान का मंदिर होता और वो ये जानबूझ के नहीं चुनते थे बस अचानक से हमेशा ही ऐसा होता वो दोनो सोचते की भगवान भी उनके साथ हैं वो बहुत खुश थे
वो एक बार मिले और दूसरी बार में बहुत करीब आ गए
इस बात से अर्चु डर गई थी मानो जैसे वो थी ही नहीं
उसे यकीन नहीं होता था की वो ही थी उस रात
अर्चु ने आशू से बात की और कहा की अब मुझे तेरे साथ नहीं रहना क्योंकि वो यही सोचती रहती की मैं मेरी मां को धोखा दे रही हूं
और वो धोखा ही तो था उसकी मां की लाडली बेटी जो थी वो अपनी मां से कभी कुछ नहीं छुपाती
लेकिन वो अपने प्यार का बुरा हाल नहीं देख पाई और फिर से बात करने लग गई
फिर एक महीने बाद उनकी मुलाकात हुई जब भी मुलाकात होती उनके बीच जो होता अर्चू को सपना आ जाता पहले ही वो कुछ समझ नहीं पा रही थी
वो मिलते रहे क़रीब आते रहे
अर्चु अब अर्चु ना रही मानो कोई और हो गई हों
अब वो बस कुछ भी करके आशू से मिलना चाहती
अब हद हो चुकी थी आशू के पास वक्त नहीं होता तो उनकी बात कम होने लगी अर्चू ने भी बात बंद कर दी
और एक महीने बाद पता चला कि अर्चु के अंदर किसी और की आत्मा थी जिसे आशू से प्यार हो गया था
अर्चु धीरे धीरे आशू को भूलने लगी जैसे जैसे उसका इलाज़ होंने लगा
और इस बात का पता उसे चल रहा था वो रोज़ प्रथनाए करती भगवान से की मुझे मेरा प्यार नहीं भूलना लेकिन वो इस बात से अनजान थी की वो जो बोल रही हैं वो वो नहीं हैं और जैसे जैसे इलाज़ होता गया वो उसे भूलने लगी
वो बहुत रोती
मगर
अब तो मानो जैसे उसको कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता....
वो आत्मा को बाहर निकाल दिया 2 महीने के इलाज़ में
अब अर्चु उसके प्यार को भुला चुकी थी
दोनों बहुत प्यार करते थे लेकिन आशू को किस बात की सजा मिली आखिर
बेचारा वो तो उसे बेइंतेहा मोहब्बत करता था......एक प्यारी सी प्रेम कहानी में कोई और भी आ गया उनके दरमिया या यूं कह लीजिए की शायद क़रीब लाने वाली ही वो शक्ति ही थी.....!!