भूतिया हवेली ( भाग - 1 )
अँधेरी सड़क पर एक बस तेज रफ्तार मे बढ़ती जा रही है अपनी मंजिल की ओर। उस बस मे सवार हर एक यात्री इस कदर नींद के आगोश मे सोया हुआ है जैसे वह बस मे नही अपने घर मे सो रहे हो।
लेकिन उस पूरी बस मे जहाँ सभी गहरी नींद मे है वही ड्राइवर के साथ वेदांत भी अपनी सीट की खिड़की पर बैठकर ना जाने कौन से ख्यालों मे खोया हुआ है।
वेदांत अपने ख्यालों मे खोया ही हुआ था की उसकी नजर लगभग 3. 4 किलो मीटर की दूरी पर बनी एक हवेली पर जाती है। जिसको देखकर वेदांत हैरान हो जाता है। की आखिर ऐसा कैसे हो सकता है।
जहाँ दूर-दूर तक एक इंसान नही नजर आ रहा वहाँ इतनी खूबसूरत हवेली कैसे बनी है। यहाँ तक की पूरी सड़क पर अंधेरा है। सिर्फ उस हवेली को छोड़कर लेकिन कुछ भी कहो यह हवेली देखने मे तो बहुत खुबसूरत लग रही है।
जैसे-जैसे वह बस हवेली की और बढ़ रही थी। वैसे-वैसे उसकी खूबसूरती भी बढ़ती जा रही थी। वही वेदांत की नजर अभी भी उस हवेली पर टिकी हुई थी।
लेकिन जैसे ही वेदांत की नजर हवेली मे लगे खूबसूरत से फुहारे पर जाती है। उसे अपनी आँखो पर विश्वास ही नही होता की उसने अभी जो देखा है कही उसकी आँखो का धोख़ा तो नही हैं।
वह अपनी आँखो को मल कर जैसे ही दुबारा उस फुहारे पर नजर डालता है वो हैरान रह जाता है क्योंकि फुहारे से पानी तो निकल रहा है लेकिन लाल रंग का आखिर यह कैसे हो सकता है। क्या पता ऐसे फुहारे भी आते हो।
वह यह सब सोच ही रहा था। की ठीक हवेली के सामने बस मे सवार लोगो को एक जोरदार झटका लगता है। जिससे बस के ज्यादतर लोग सोते-सोते अपनी सीट से नीचे गिर जाते है और बस वही रुक जाती है।
वह झटका इतना जोरदार था की वेदांत बैठे बैठे अपने आगे वाली सीट से जा टकराता है। जिससे उसके मुँह से आह ह,,, निकल जाती है।
वेदांत अपने सिर को मलते हुए अपनी सीट से उठकर ड्राइवर के पास जाता है और ड्राइवर से पूछता है...
लेकिन उस पूरी बस मे जहाँ सभी गहरी नींद मे है वही ड्राइवर के साथ वेदांत भी अपनी सीट की खिड़की पर बैठकर ना जाने कौन से ख्यालों मे खोया हुआ है।
वेदांत अपने ख्यालों मे खोया ही हुआ था की उसकी नजर लगभग 3. 4 किलो मीटर की दूरी पर बनी एक हवेली पर जाती है। जिसको देखकर वेदांत हैरान हो जाता है। की आखिर ऐसा कैसे हो सकता है।
जहाँ दूर-दूर तक एक इंसान नही नजर आ रहा वहाँ इतनी खूबसूरत हवेली कैसे बनी है। यहाँ तक की पूरी सड़क पर अंधेरा है। सिर्फ उस हवेली को छोड़कर लेकिन कुछ भी कहो यह हवेली देखने मे तो बहुत खुबसूरत लग रही है।
जैसे-जैसे वह बस हवेली की और बढ़ रही थी। वैसे-वैसे उसकी खूबसूरती भी बढ़ती जा रही थी। वही वेदांत की नजर अभी भी उस हवेली पर टिकी हुई थी।
लेकिन जैसे ही वेदांत की नजर हवेली मे लगे खूबसूरत से फुहारे पर जाती है। उसे अपनी आँखो पर विश्वास ही नही होता की उसने अभी जो देखा है कही उसकी आँखो का धोख़ा तो नही हैं।
वह अपनी आँखो को मल कर जैसे ही दुबारा उस फुहारे पर नजर डालता है वो हैरान रह जाता है क्योंकि फुहारे से पानी तो निकल रहा है लेकिन लाल रंग का आखिर यह कैसे हो सकता है। क्या पता ऐसे फुहारे भी आते हो।
वह यह सब सोच ही रहा था। की ठीक हवेली के सामने बस मे सवार लोगो को एक जोरदार झटका लगता है। जिससे बस के ज्यादतर लोग सोते-सोते अपनी सीट से नीचे गिर जाते है और बस वही रुक जाती है।
वह झटका इतना जोरदार था की वेदांत बैठे बैठे अपने आगे वाली सीट से जा टकराता है। जिससे उसके मुँह से आह ह,,, निकल जाती है।
वेदांत अपने सिर को मलते हुए अपनी सीट से उठकर ड्राइवर के पास जाता है और ड्राइवर से पूछता है...