...

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मैं "वैरागी" बनकर रहता हूँ...
तुम्हारे जाने के बाद अब
काफ़ी कुछ बदल गया है
अब मैं पहले जैसा नहीं रहा
ना ही बिल्कुल नये जैसा हूँ
पता नहीं अब मैं.... ना जाने अब कैसा हूँ...
मगर.... अब मैं कोई ख़्वाब नहीं बुनता हूँ
दिमाग़ से सोचता हूँ दिल की नहीं सुनता हूँ
अब मैं यादों में नहीं खोता हूँ
ख़ुद पर खर्च करता हूँ वक़्त
अब अपने साथ ही होता हूँ
अब मैं तुम्हें ज्यादा नहीं सोचता हूँ
दिल के ज़ख्मों को भी अब
बार-बार नहीं नोंचता हूँ
बीती बातों को छोड़ अब
मुझें आगे की सुधी लेनी है
जो उजड़ गयी थी दुनिया
फ़िर से गुलज़ार कर देनी है
अब मैंने पिछली बातों को सोचना छोड़ दिया है
सच करके स्वीकार मैंने
हक़ीक़त से ख़ुद को जोड़ लिया है
अब मैं किसी से कोई उम्मीद नहीं रखता हूँ
रिश्तों को भी मैं अब ज्यादा नहीं परखता हूँ
अब मैं लोगों से उन सा ही पेश आता हूँ
दिल की बात को दिल में दबाकर
अब मैं दुनियादारी अपनाता हूँ
भावों के दरिया में अब मैं नहीं बहता हूँ
जो जैसे व्यवहार करे उससे वैसा कहता हूँ
अब मैं दिल और दिमाग़ की पीर नहीं सहता हूँ
ख़ुश हूँ मैं जब से "वैरागी" बनकर रहता हूँ।

© Gaurav J "वैरागी"

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