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प्रेम और शादी(part 1)


Part १
प्रेम और शादी को लेकर अकसर बहुत से सवाल उठते रहते है, यहाँ लोग एकबारगी ग़ैरविवाहित जोड़ो का तो प्रेम स्वीकार कर लेते है लेकिन विवाहित लोगो का किसी अन्य के प्रति प्रेम स्वीकार नही कर पाते, उन्हें हमारे समाज द्वारा यह एहसास कराया जाता की वह अपराधी है, और कोई जघन्य अपराध कर रहे है। बगैर यह जाने की वह अपने निजी जीवन में क्या अनुभव कर रहे है, अपने विवाह को लेकर कैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे है? प्रेम जैसी पवित्र भावनाओं को व्यभिचार से जोड़ देते है जबकि प्रेम तो हमेशा पवित्र और निष्काम होता है।

हालांकि यह सच है कि सफल प्रेम वही है जो विवाह की वेदी तक पहुँचे, लेकिन क्या यह अपने रूढ़िवादी परम्पराओ से जकड़े देश में सम्भव है? यहाँ शादियां प्रेम के लिए नही इज्जत और प्रतिष्ठा के लिए होती है, दो परिवारों के बीच ऐसा अनुबंध जिससे दोनों परिवार एक दूसरे के सहयोग से समाज मे शक्तिशाली हो जाये। यहाँ शादी के लिए सिर्फ कन्या या वर की ही योग्यता नही देखी जाती है यह देखा जाता है कि कन्या और वर के पिता कितने धनवान है, कितने ऊंचे पद पर कार्य कर रहे है। उनके भाई-बहन कितने योग्य है, और क्या काम करते है.. पैतृक संपत्ति कितनी है और इन सबका विवरण वर बधू के बॉयोडाटा में टंकित किया जाता है। अब सवाल मेरा समाज से है, यह व्यापार है या फिर विवाह?

होता क्या है कि दो असहज लोगो को एक दूसरे के पल्ले बांध दिया जाता है इस उम्मीद के साथ कि वह जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाएंगे। उनकी आदतें क्या है, उनका मानसिक स्तर क्या है बगैर यह समझे, उनकी आपसी समझ कैसी है? शहर में पली-बढ़ी उच्च शिक्षित लड़कीं एक अलग माहौल में पले-बढ़े गांव के लड़के से विवाह के बंधन में बांध दी जाती है। क्यों? क्योकि लड़के का परिवार अपने इलाके का सबसे सम्पन्न और राजनीतिक रूप से अत्यंत शक्तिशाली और बाहुबली है। परिणीति क्या हुई .. दोनों की जिंदगी तबाह हो गयी। दोनों खूबसूरत थे, दोनों मानवीय संवेदनाओं से भरे, उल्लसित और अपनी जिंदगी का भरपूर आनंद ले रहे थे। लेकिन इस विवाह ने दोनों की जिंदगियां तबाह कर दी दोनों बर्बाद हो गए और ऐसे बर्बाद हुए की आज समाज की नजर में दोनों अपराधी है। दो हंसते खेलते जीवन ऐसे तबाह हुए की बस उनकी सांसे चल रही है लेकिन कबके मर चुके है। उनके जीवन में अब कोई अमृत रस नही विष बहता है जो दोनों को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है, दोनों के परिवार में से कोई उनके साथ नही है।

दरअसल दोनों का मानसिक स्तर एक जैसा नही था, पति को ऐसी पत्नी चाहिए थी जो गृहकार्य में दक्ष हो, पति के ईगो को तुष्ट करने वाली हो, साड़ी और घूंघट पहनने वाली हो.. ऐसी पत्नी  जिसे अपनी  पति से ज्यादा ज्ञान न हो। घरेलू महिला, जिसे कभी वह गुस्से में एक थप्पड़ भी लगा दे तो वह बर्दाश्त कर सके। उसके कपड़े धोए उसके लिए खाना पकाए उसके बच्चे पाले.. और ऐसी पत्नी उसे मिलती तो हो सकता था दोनों में प्रेम भी हो जाता है और दोनों एक दूसरे का बुढ़ापे में सहारा होते। लेकिन हुआ क्या.. दोनों विपरीत ध्रुव, ज्यादा पढ़ी लिखी और शहर के माहौल में परवरिश पाई फेमनिस्ट पत्नी को यह स्वीकार ही नही हुआ। उसे पति ऐसा चाहिये था जो उसे शायरी सुना सके, रूठे तो गाना गाकर मना सके, उसकी सहेलियों के पति जैसा शानदार ड्रेसिंग सेंस वाला, रेस्तरां ले जाने वाला, आधुनिक तौर तरीके वाला, जहाँ दूसरे पुरुषों के साथ बातचीत शक के दायरे में न रखने वाला पति चाहिये था। दोनों को कुछ नही मिला, आज नतीजा यह है कि दोनों एक दूसरे को, मां बाप को कोसते जीवन जी रहे है। शराब ने ऐसा तबाह किया कि चलना फिरना मुश्किल है, लोग बगल में बैठना पसन्द नही करते। परिवार की इज्जत धूल में मिला दी, शानदार और ऐसा गठा हुआ शरीर जिसे पूरे इलाके में कोई ऐसा मर्द का बच्चा नही था जो आंख दिखा, डर से लोग रास्ता छोड़ जाते थे आज वह एक गिलास पानी के लिए लाचार है। कुछ ऐसा ही हाल पत्नी का है उसके जीवन मे भी वही विरानिया है। आंखे उदास, उम्र से ज्यादा दिखती उम्र, आंखे जिसने कभी बसंत का मौसम नही देखा, तबाह बर्बाद बेरस...

ईमानदारी सिर्फ इतनी की दोनों ने फिर कभी विवाह नही किया, शायद सामाजिक बेड़ियां यहाँ भी कहीं काम कर रही थी, लेकिन काश की वह इन बेड़ियों को तोड़ पाते और दूसरा विवाह कर लेते तो शायद अच्छा होता। पता नही उन्हें दूसरा मानव जीवन मिलेगा या नही, पता नही उनके सपने उस जीवन मे पूरे होंगे या नही .. कौन जानता है? लेकिन यह वाला तो उन दोनों ने तबाह कर लिया।

समाज की यह बेड़ियां तोड़ना इतना आसान नही है, अधिकतर लोग इन बेड़ियों से समझौता कर लेते है, डाल देते है हथियार.. बिना लड़े, और जो तोड़ देते है उनको भी समाज कहाँ स्वीकार कर पाता है। तलाकशुदा लोगो को तो अपराधी समझ लिया जाता है, ऐसी निगाहों से देखा जाता है जैसे उन्होंने दुनिया का सबसे घृणित अपराध किया हो!
© kajal