प्रेम और शादी(part 1)
Part १
प्रेम और शादी को लेकर अकसर बहुत से सवाल उठते रहते है, यहाँ लोग एकबारगी ग़ैरविवाहित जोड़ो का तो प्रेम स्वीकार कर लेते है लेकिन विवाहित लोगो का किसी अन्य के प्रति प्रेम स्वीकार नही कर पाते, उन्हें हमारे समाज द्वारा यह एहसास कराया जाता की वह अपराधी है, और कोई जघन्य अपराध कर रहे है। बगैर यह जाने की वह अपने निजी जीवन में क्या अनुभव कर रहे है, अपने विवाह को लेकर कैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे है? प्रेम जैसी पवित्र भावनाओं को व्यभिचार से जोड़ देते है जबकि प्रेम तो हमेशा पवित्र और निष्काम होता है।
हालांकि यह सच है कि सफल प्रेम वही है जो विवाह की वेदी तक पहुँचे, लेकिन क्या यह अपने रूढ़िवादी परम्पराओ से जकड़े देश में सम्भव है? यहाँ शादियां प्रेम के लिए नही इज्जत और प्रतिष्ठा के लिए होती है, दो परिवारों के बीच ऐसा अनुबंध जिससे दोनों परिवार एक दूसरे के सहयोग से समाज मे शक्तिशाली हो जाये। यहाँ शादी के लिए सिर्फ कन्या या वर की ही योग्यता नही देखी जाती है यह देखा जाता है कि कन्या और वर के पिता कितने धनवान है, कितने ऊंचे पद पर कार्य कर रहे है। उनके भाई-बहन कितने योग्य है, और क्या काम करते है.....