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"माफ़ी"
जब "साक्षी" और "अमर" घूमने जाया करते तो चलते वक्त "अमर" हमेशा "साक्षी" से आगे चलता। "साक्षी" का हाथ पकड़ कर चलना उसे अच्छा नहीं लगता। "साक्षी" भी इतनी ओपन माइंडेड नहीं थी और न ही इतनी हिम्मतवाली। हां पर उसे मन ही मन इस बात का मलाल रहता है कि "अमर" उसे सबके सामने स्वीकारता नहीं है।

डेटिंग के लिए "अमर" कोशिश करता कि जगह ऐसी हो जहां कम से कम लोग आते हों। ज़्यादा चहल-पहल ना हो और जाने पहचाने लोगों के मिलने का खतरा ना हो।

बड़े शहर में छोटा सा कोना (रेस्टोरेंट)था, जिसमें वो अक्सर जाया करते। वहां अक्सर दो तीन कपल ही आते थे। रेस्टोरेंट्स शहर की आबादी से दूर एकांत में था तो दोनों को प्यार के दो मीठे पल साथ बिताने को मिल जाते, जहां सुकून से अपनी बातें कर लेते।

दोनों के बीच प्यार तो था लेकिन "अमर" को भौतिक चीजों(साक्षी की खूबसूरती और उसके पहनावे) में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी। उसकी बातें हमेशा स्टडीज़, करियर और राजनीति से जुड़ी होती। उनमें कहीं भी "साक्षी" की पसंद नापसंद की कोई जगह ना होती।

"साक्षी" ने कई बार अपने मन की इच्छा, अपनी पसंद, अपने विचार ज़ाहिर करने की कोशिश की। पर "अमर" सेल्फ सेंटर्ड पर्सन था। उसे एहसास ही नहीं था कि "साक्षी" की पसंद क्या है। "साक्षी" को चिढ़ाने के लिए वो पास से गुज़रती हर लड़की को तब तक देखता जब तक वह आंखों से ओझल न हो जाये। "साक्षी" मन ही मन इन हरकतों को देखकर कुड़ती रहती पर "अमर" से एक शब्द भी ना कहती, बस मुस्कुरा देती।

हंसी मज़ाक में "अमर" प्यार से उसके गाल पर मार देता। "साक्षी" भी मज़ाक में लेती और अपोज़ नहीं करती। एक दिन रेस्टोरेंट में एक थप्पड़ की गूंज इतनी ज़्यादा थी कि सारा माहौल शांत हो गया। रेस्टोरेंट के सभी कर्मी और वहां बैठे गेस्ट "साक्षी" को घूर-घूर के देखने लगे। जब थप्पड़ की गूंज कुछ धीमी पड़ी तो "साक्षी" को अहसास हुआ कि उसके साथ क्या हो रहा है। उसे एक ही पल में सारी कड़वी यादें दोहरा गई। साक्षी के गुस्से का बांध टूट गया और पलट के उसने "अमर" को एक जड़ दिया।

उसकी आंखों से आंसू बहने लगे क्योंकि "अमर" के गाल पर साक्षी की पांचों उंगलियां छप चुकी थीं ।आंसू पोंछते हुए "साक्षी" ने अपना पर्स और फोन उठाया और रेस्टोरेंट्स से निकल गई। "अमर" उसके पीछे पीछे दौड़ा...
साक्षी... साक्षी... हाउ डेयर यू साक्षी। तुम्हारी इतनी हिम्मत???? साक्षी का हाथ पकड़ते हुए...
इट्स इनफ अमर...।(अमर की तरफ पलटते हुए साक्षी ने कहा)
व्हाट इनफ??? यह क्या बदतमीजी है?? तुमने मुझे मारा?? दिमाग तो ठीक है??
साक्षी:-सब देख रहे हैं। रोड पर ड्रामा मत करो।
अमर:-व्हाट??? आर यू....मैं ड्रामा कर रहा हूं??यू नो वेरी-वेल मेरा हाथ उठ जाता है।
साक्षी:- नो! आई रियली डोंट नो! व्हाट यू आर ट्राईंग टू डू????
अमर:- ओ कम्मौन यार...। इट्स नॉट द फर्स्ट टाइम सो डोंट ओवर रिएक्ट (गुस्से में)। तुमने मुझपे हाथ उठाया??? मुझपे??? जिससे तुम प्यार करती हो...
साक्षी:-ओ जस्ट शट अप अमर। प्यार तो तुम भी करते हो ना, सो व्हाट अबाउट मी???
अमर:- यह तो बहुत बार हुआ है हमारे बीच ??पहले तो तुमने कभी भी ऐसा नहीं किया, हाउ कैन यू स्लैप मी साक्षी??? हाउ डेयर यू??
साक्षी(गहरी सांस लेते हुए):- लिसन टू मी वेरी केयर फुली अमर। आई लव यू एलोट। बट नाओ इट्स हाई टाईम। आई एम सॉरी। कॉनट टेक इट एनीमोर... गुडबाय अमर।

साक्षी का अमर को छोड़ कर जाना बर्दाश्त नहीं हुआ। भावुक होकर वह अपने घुटनों पर बैठ गया और साक्षी के दोनों हाथ पकड़ के रिक्वेस्ट करने लगा....नो नो साक्षी... प्लीज़। डोंट लीव मी....। आई लव यू। हाउ कैन यू बी सो रूड...??
साक्षी:-सॉरी "अमर".. अब और नहीं...

इतना कहके "साक्षी" रिक्शे में बैठ गई। पूरे रास्ते उसकी आंखों से आंसू बहते रहे और सारी कड़वी यादें, याद आती रहीं। वो "साक्षी" और "अमर" के रिलेशनशिप का आखरी दिन था।

माफ़ी मांगना बहुत आसान है पर माफ करना उतना ही मुश्किल। किसी को तभी माफ करें जब आप संतुष्ट हों कि वो आपकी माफ़ी के लायक है।

फोटो क्रेडिट- शिरोज़ एप्लीकेशन।
© प्रज्ञा वाणी