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नेत्रानी द्वीप
पिछले भाग में हमने पाया कि मंगल श्री को उपहार स्वरूप वर्ष प्रदान करता है और उसके कुछ दिन बाद मंगल श्री राज्य भ्रमण पर निकलते हैं और पाते है कि 20 मीटर पर अंधेरी दुनिया.... जहां पर श्री की अंगूठी गिर जाती है और श्री उसे फिर से पाने का इंतज़ार करती है......

आगे की कहानी विस्तार से.....

इंतज़ार -६

(अश्रु का अभिशाप- नेत्रानी द्वीप )

मंगल :- समुद्र के किनारे किनारे चलते हुए श्री से कहता है कि श्री यह अंगूठी आज भी उतनी ही सुंदर है जितना वर्षों पहले था!

श्री- हाँ , इस पर हमारे प्रीत का रंग जो हैं , इस वजह से यह आज भी उतना ही सुंदर है जितना पहले था...

श्री- अंगूठी को अपने उंगलि से निकालकर मंगल को दिखाने के लिए आगे बढ़ती है और तभी उसका पैर पत्थर के एक बड़े टुकड़े से जा टकराता है और श्री के हाथों से वह अंगूठी समुंद्र जल में गिर जाता है !

श्री - श्री खोने के डर से उसे मायूस हो जाती है, और मंगल श्री दोनों उसे ढूंढने का अथक प्रयास करते हैं परंतु भी विफल हो जाते हैं.....

रात होने को आती है मंगल श्री को महल लौटना भी था... और दोनों मायूस मन से महल को लौट जाते हैं!
श्री को वह अंगूठी बहुत ही पसंद था मंगल या बात और खूब ही जानता था परंतु नियति का खेल ही कुछ और था!

श्री- श्री पूरी रात रोती रही और कुछ भी ना खाया मंगल ने बहुत समझाया परंतु श्री मानने को तैयार न थी!

श्री उस अंगूठी से जुड़ी अपनी यादें मंगल से दोहराती है......

श्री- मंगल तुम्हें याद है ना यह मोटी तुमने मुझे कब पहनाई थी!
मंगल - हाँ श्री, विषम परिस्थितियों में, यह हमारे प्रीत और कंचन नगरी के मान और सम्मान का एक प्रतीक था!
जिसे हमने माधव से अपने प्रीत भक्ति के फलस्वरूप प्राप्त किया था! माधव ने इसे स्वयं अपने हाथों से हमें प्रदान किया था, जिसे मैंने तुम्हें पहनाया था....

हमारे पूर्वजों के बीच हमारे प्रेम की असहमति थी और घोर युद्ध का बिगुल बजने से पहले युद्ध भूमि में दोनों परिवारों को एकमत करते हुए, बिना लहू की एक बूंद गिरे हुए युद्ध का विराम करना हमारे प्रीत की पहल से ही संभव हो पाया था!

यह देख माधव ने तब प्रसन्न होकर स्वयं यह प्रीत का अंगूठी दिया था और यह वचन भी दिया था कि जब तक यह अंगूठी आप दोनों के पास है तब तक आप दोनों का प्रित कभी कम नहीं होगा!

श्री- और अत्यधिक चिंतित मन से श्री मंगल से बोलती है क्या हमारा प्रित कम हो जाएगा....?

मंगल- श्री को समझाता है और मंगल कहता है कि हे श्री जीवन के हर परिस्थितियों में हमारा प्रीत सच्चा रहा है और हर पल रहेगा....

मंगल - श्री तुम्हें याद है ना जब हमारे पूज्य जन हमारे पूर्वज हम दोनों को अकेला छोड़ स्वर्ग सिधार गए थे! धन वैभव संपदा की अधिकता भी उन्हें जाने से रोक नहीं पाई, तो ऐसे धन का हम क्या करते!

हमने उस नगर को भी छोड़ दिया क्योंकि वहां प्रीत नहीं धन का महत्व ही था...

मंगल - बातें करते हुए श्री से कहता है कि श्री तुम्हें याद है ना वो पल जब महाराज के जाने के बाद लोगों के मन में लोभ कितना व्याप्त हो गया था। भोजन बनाने हेतु जब हमने बाजार में सब्जियों के लिए गए थे तो दुकानदार मुद्राओं को ना लेकर हमारे आभूषणों के बदले सब्जी देने की बात कही..... एक-एक करके सारे आभूषण उस समय हमसे दूर हो गए थे और प्रीत की अंगूठी ही तुम्हारे अंगुलियों में बची थी!

अत्यधिक लाड़ प्यार और वैभवशाली परिवेश में पालन पोषण होने के कारण हममें आम जीवन और लोभी समाज का आकलन नहीं था।

परंतु श्री कई दिनों तक भूखे रहने के बाद भी हमने इस अंगूठी के बदले भोजन स्वीकार नहीं किया था।

और हमने वह राज्य छोड़कर जंगल की ओर जाना मुनासिब समझा जहां इंसान से बेहतर जानवर विश्वासपात्र रहे। असल प्रीत तब हमें उनसे मिली....!

उस बूढ़ी माँ का मार्गदर्शन मिला जिसने हमें प्रेम भाव के बदले सब्जी प्रदान किया था!

आज यह हमारा कंचन नगरी सारे वैभव से परिपूर्ण और प्रीत का एक अद्वितीय राष्ट्र है जिसका श्रेय श्री तुम को अत्यधिक जाता है इसे निर्माण करने में!

श्री का मन अत्यधिक उदास था....जैसे तैसे करके रात्रि बीती और मंगल श्री उस अंगूठी को ढूँढ़ने के लिए फिर से उसी समुद्र के किनारे पहुंचते हैं।

इस बार कई दिनों के बीच जाने के बाद भी मंगल श्री को वह अंगूठी नहीं मिलती....

रहस्य की एक बात मंगल श्री को समझ में नहीं आती !

जब मंगल उस समुद्री जल में प्रवेश करता तो समुद्र का स्वच्छ जल काला हो जाता और समुद्र के अंदर कुछ भी न दिखाई देता ऐसा सिलसिला बार-बार कई दिन तक चलता रहा।

अपने आराध्य श्री बजरंगबली जी का ध्यान करके एक बार मंगल फिर से प्रयास किया और समुद्र जल की तलहटी में गया जहां उसे बाहर आने में अत्यधिक विलंब होने लगा यह देख श्री बहुत चिंतित होती है!

और श्री के आँखों से अश्रु निकल पड़ते हैं जैसे ही श्री के अश्रु उस समुद्र जल में पढ़ते हैं वैसे ही उस समुद्र जल में एक अद्वितीय रोशनी पैदा हो जाती है और मंगल श्री के उस अंगूठी को ढूँढ़ने में कामयाब हो जाता है और उसे लेकर समुद्री जल से बाहर निकलता है।
श्री और मंगल अंगूठी मिलने के उपरांत जैसे ही समुद्र तलहटी से महल की ओर बढ़ते हैं वैसे ही समुद्र जल से एक आवाज निकलती है कि हमें क्षमा करें और हमारे इस जल को पुनः काला रहने दे!

समुद्र जल - श्री से बोला हे देवी आपके गिरे अश्रु हमारे लिए अभिशाप है कृपया इससे हमे मुक्ति दे.....हम लालच बस आपके! प्रीत की अंगूठी को लौट आना नहीं चाहते थे, हमसे बड़ी भूल हुई है कृपया हमारे भूल को क्षमा करें! वरना यहां की समस्त जीव जंतु नष्ट हो जाएंगे....बड़ी मन्नत के बाद श्री को समुद्र जल पर दया आती है और बोलती है प्रकाश का प्रभाव कम हो सकता है परंतु तुम्हारा पल पूरी तरह से काला कभी नहीं रहेगा ...

श्री - श्री समुद्र से कहती है कि 20 मीटर के बाद से तुम्हारे अंधेरी दुनिया का प्रभाव रहेगा जहां पर तुम्हारा जल अत्यधिक धुंधला रहेगा!

श्री- समुद्र जल से - आज से यह स्थान नेत्रानी द्वीप, कबूतर द्वीप (पिजन आईलैंड), बजरंगी द्वीप , दिल के आकार का द्वीप के नामों से जाना जाएगा।

ऐसा कहकर मंगल श्री वहां से चले जाते हैं। मंगल श्री अपनी प्रजा जन की सलामती खुशहाली का भरपूर ध्यान रखते हैं और राध-माधव भक्ति अभूतपूर्वसंचार हर जन में देखने को उनको मिला!

प्रसन्न मन से मंगल श्री महल की ओर चलते है और उन्हें सावन की पूर्णीमा का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है....

.....कहानी का अगला भाग इंतज़ार - ७ में

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कल्पना पर आधारित कहानी.....
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