...

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"स्वतंत्रता"
शाम के 6:30 बज चुके थे।कमरे में अन्धेरा अपना अस्तित्व बनाना शुरु कर दिया था। आज Sundayकी छुट्टि थी इसलिए मैं दिनभर novel पढ़ती रही, मेरी फितरत थी novel पढ़ते वक्त उसमें डूब जाने की।
हवा के संग कुछ बारिश की बूँदे खिड़की से आते हुए मेरी हथेली पर गीरी और कुछ छिंटे book पर पड़ी, तो मेरा ध्यान किताबों से निकलकर बाहर आया।
मैं खिड़कियों को बन्द करते हुए बालकनी की तरफ गयी।
बालकनी के पर्दो को अन्दर की तरफ खींचा नजरे बाहर दौड़ाई तो देखा, मौसम का मीजाज बदल चुका था। जहां दिन भर कडी़ धूप थी वहाँ बादल के टुकडे, हवाऐं और बारीश की बूँदे अपना बसेरा बना रही थी। तपती धरती पर बूँदे गीरी तो मेरा मन भींच लिया।
ये वक्त है,जिसमें कुछ पल के लिए मै सारी नाराजगी, शिकायते दरकिनार करके कुछ वक्त के लिए इनमें खो जाया करती थी।
बारीशों के साथ हवाऐं तेज बहने लगीं तो मेरा ध्यान छज्जे पर लगे गमले की तरफ गया।
नन्हे कोमल पौधे तेज हवाओं में टूट ना जाऐ इसलिए मैं उन्हे नीचे उतारना चाही।
पर...
पौधो को देखकर लगा जैसे वो ना उतरने की मंजूरी दे रही हों।
मानो वो कह रहीं हों कि मुझे हवाओं संग भीगना और बहना मंजूर है।
मैंने उन्हे स्वतंत्र छोड़ना मुनासीब समझा।
क्योंकि मैं भलीभांति समझती थी स्वतंत्रता ना मिलने का मतलब।
कितना बुरा लगता है जब आपके जीवन का निर्णय कोई और ले।
चलो एक बार मान भी लूँ कि बडे़ होने के नाते हमारे बडे़, हमारे जीवन का निर्णय ले तो बुरा नहीं ।मगर उन निर्णय से अगर हम सहमत ना हो और वो हम पर जबरजस्ती थोपी जाए तो ये बुरा है।
उन चेहरों पर टूटे सपनों की कशीश मैं साफ देख सकती हूँ जिनकी स्वतंत्रता भंग कर दी गयी हो।
बेहतर होगा अगर हम सभी को स्वतंत्र छोड़ दे।उनके जीवन को उनके तरीके से जीने दे।
हाँ, अगर लोगो को लगता है स्वतंत्र छोड़ने पर वो सही- गलत का निर्णय नहीं ले पायेगी।फिर भी उसे स्वतंत्र छोड़ दे।
क्योंकि गलत निर्णय लेने से ही सही निर्णय लेने की समझ आऐगी।
और उसे दुःख भी नही होगा की उसकी स्वतंत्रता को बेडी़यों में बाँधा जा रहा है।
इसलिए बेहतर होगा कि लोगों को स्वतंत्र छोड़ दे। इसलिए नहीं की आप ऐहसान कर रहें, इसलिए क्योकि स्वतंत्रता उनका अधिकार है।।