...

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"स्वतंत्रता"
शाम के 6:30 बज चुके थे।कमरे में अन्धेरा अपना अस्तित्व बनाना शुरु कर दिया था। आज Sundayकी छुट्टि थी इसलिए मैं दिनभर novel पढ़ती रही, मेरी फितरत थी novel पढ़ते वक्त उसमें डूब जाने की।
हवा के संग कुछ बारिश की बूँदे खिड़की से आते हुए मेरी हथेली पर गीरी और कुछ छिंटे book पर पड़ी, तो मेरा ध्यान किताबों से निकलकर बाहर आया।
मैं खिड़कियों को बन्द करते हुए बालकनी की तरफ गयी।
बालकनी के पर्दो को अन्दर की तरफ खींचा नजरे बाहर दौड़ाई तो देखा, मौसम का मीजाज बदल चुका था। जहां दिन भर कडी़...