...

13 views

प्यारा बचपन
लगभग साठ साल पहले की बात है। मेरे नजदीकी परिचित है वो अक्सर अपने दादाजी - दादीजी की कहानी सुनाया करते थे। उसमें ये उनका प्यारा बचपन के बारे में सुनकर बहुत अच्छा लगा ये ही कहानी हम बताने जा रहे है।

गुजरात के नवसारी जिले में एक छोटा सा गाँव है। गाँव नाम है बोदाली। गाँव की बात ही निराली है।
तब गाँव में छोटी सी पगडंडी हुआ करती थी, बैलगाड़ी से एक गाँव से दूसरे गाँव या शहर बैलगाड़ी में बैठकर जाया करते थे।
गाँव की शुद्ध आबोहवा, लोग खेती करते थे और उनके यहाँ मछली पालन भी हुआ करता था।
गाँव में बहुत सारे तालाब तब हुआ करते थे!

हरे- भरे खेत, खेत के आसपास कच्चे मकान, कुछ ओर ही बात थी!
लोग घर के बाहर चारपाई में सोते थे! गाँव में चौपाल हुआ करती थी! बड़े बुजुर्ग वहाँ बैठते थे गपशप करके अपना समय गुजारा करते थे! तब वहाँ बिजली बहुत कम थी! इंटरनेट नहीं था ना ही किसी के पास मोबाइल था! बस रेडियो में गाना सुना करते थे।


गाँव की बात ही निराली है! सुबह वहाँ पनघट पे गाँव की औरते कुएँ में पानी भरने जाती थी!
उसी गाँव में दादा- दादी का बचपन गुजरा था। वो बचपन की बातें आज भी किया करते है!

वो बचपन बहुत ही प्यारा था! स्कूल से घर आते थे, फिर खेतों में तालाब किनारे खेलने चले जाते थे! खेत के पीछे नर्मदा नदी भी बहती थी। तब ना पढाई की चिंता थी, ना कोई जिम्मेदारी थी! तब घर में खिलौने नहीं खेलते थे! बस बाहर अंबिया की डाल पर झूला झूलते थे। खो- खो, गिल्ली डंडा, कब्बड्डी, कंची ऐसे खेल खेला करते थे! थक कर घर आ कर सब्जी- रोटी खाकर सो जाया करते थे!

एक दिन खेलते- खेलते हम तालाब किनारे जा पहुँचे! वहाँ पत्थरों के पास बैठकर पानी में पैर डालकर बैठना कितना मज़ा आता था!

पानी में मछली हुआ करती थी उसे देखकर मछली पकड़ने का मन करता था! मछली को पकड़ने की कोशिश करते थे!
वहाँ के लोग मछली पालन करते थे! उनकी देखभाल करते थे! दादाजी भी वहाँ जाते थे, मछली को देखकर बहुत खुश होते थे! सोचते थे मछली भी कैसे पानी में तैरती है, मज़े करती है! उन्हें देखकर मन करता है हम भी मछली जैसे पानी में होते तो कितना मजा आता!

हम भी मछली पकड़ने की कोशिश करते थे! एक दिन आखिर एक मछली हाथ में आ ही गयी! बहुत खुशी हुई तब आखिर मैंने भी मछली को पकड़ लिया!

मछली को हाथ में लेकर खेल रहा था! कुछ देर बाद मछली मर गयी! तब सोचा मछली तो पानी के बाहर निकालने से मर जाती है! मछली को पानी के अंदर ही होना चाहिए! बचपन में ये किसे पता था ! अनुभव से ही हमने भी सिखा है !

हम जैसे आज़ाद है वैसे ये मछलियों को भी पानी में आज़ादी से घूमने दो!
दादाजी की बातें सुनकर हमें भी ये सिख मिली कि सबको अपनी- अपनी जिंदगी आज़ादी से जीने का हक़ है!

दादाजी अपनी ये बातें बता कर फिर बचपन में खो जाते थे!

कितना प्यारा वो बचपन था! बारिश में भीगना, काग़ज की नाव बनाकर पानी में चलाना! खेलना, गिरना, गिरकर कपड़े भी मिट्टी के हो जाते थे पर मम्मी डाँटती नहीं थी तब, गाँव का बचपन ऐसा ही हुआ करता था!

मस्तीभरा, नैसर्गिक सौंदर्य, हरे भरे पेड़, पहाड़, नदी तालाब मन को मोह लेते थे!

आज जब दादाजी से अपने बचपन की बातें सुनकर मुझे भी लगता है गाँव के लोगों का बचपन कितना प्यारा था!

आज शहरों की भीड़- भाड़ में बचपन घरमें ही गुजारना पड़ता है खिलौने खेलकर, ना बाहर तालाब है, ना हरे भरे पेड़, आज बस टी. वी. और इंटरनेट की वजह से मोबाईल में गेम खेलना तक सिमित रह गया है! ना बैलगाड़ी देखने मिलती है!

आज बच्चे बस कार, और मोटर साइकिल में घूमते है! दिन भर पढाई और घर में ही खेलने तक सिमित रह गये है!

वो दादाजी का बचपन की कहानी सुनकर हमें भी खेतों में जाना, तालाबों में मछली पकड़ना सोचते है!
सच वो दादाजी के बचपन के दिन कितने सुहाने थे!

आज सोचा हम भी एक बार दादाजी के गाँव चलते है! वो प्यारा बचपन महसूस करते है पर अफसोस, आज वहाँ आधुनिक सुविधाएं आ गयी है! पक्की सड़के बन बन गयी है!

इंटरनेट सेवाएं आ गयी है! अब बैलगाड़ी की जगह मोटर साइकिल से गाँव से शहर आने लगे है!

आज हम भी सोचते है काश हमारा भी बचपन दादाजी के जैसे प्यारा होता! तालाब होता, मछली होती, खेत होते...

इतना प्यारा बचपन काश आज हम भी अपने बच्चों को दे पाते!

Usha patel
#Ushapatel