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एक कहानी ऐसी भी - भाग एक
ये कहानी है ऐसे जोड़े की जिनकी कहानी बिल्कुल हमारी और आपके जैसे साधारण सी विवाहित जीवन में घटने वाली घटनाओं को ले कर है,पर कुछ घटनाएं ऐसी भी है जिसने इस दंपति के जीवन में उथल पुथल मचा दी।
बात तब की है जब मिताली के घर वाले उसकी पढ़ाई पूरी होते ही उसके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू करते हैं। और एक रिश्तेदार से उन्हें मयंक के बारे में पता चलता है। मयंक एक होनहार, पढ़ा लिखा और समझदार, बिल्कुल सरल स्वभाव वाला लड़का था। परिवार भी अच्छा खासा सम्पन्न था। परिवार में मयंक के माता, पिता और एक छोटी बहन थी जो की college पढ़ती थी। पता लगाने पर सब ने मयंक और उसके परिवार के बारे में अच्छा ही कहा जिसके चलते मिताली का रिश्ता मयंक के साथ तय हुआ।‌
और देखते ही देखते दोनों परिवार विवाह की तैयारियों में जुट जाते हैं। मयंक के परिवार से कोई ख़ास फरमाइश नहीं थी विवाह को लेकर,बस उनका इतना मानना था कि जितना भी बन पड़े, उतना ही काफ़ी है। बस फिर क्या था, बड़े ही धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ और मिताली अब मयंक की अर्धांगिनी बन अपने नये घर में प्रवेश करती है। सभी इस रिश्ते से काफ़ी ख़ुश थे, ख़ास कर मयंक के माता पिता। सब कुछ सही चल रहा था। मयंक पर परिवार का भार पड़ते ही उसने जिम्मेदारी को बखूबी निभाना शुरू किया। समय का पहिया तेज़ रफ़्तार से चलता गया और मयंक अब दो बच्चों का पिता बन चुका था ‌। जिम्मेदारी अब और बढ़ गई तो मयंक दिन दुगनी रात चौगुनी मेहनत करने लगा और सब की ज़रूरतों का ख़्याल भी अच्छी तरह से रखने लगा। पर वो कहते हैं ना कि बदनसीबी कहीं भी और कभी भी इंसान को डस सकती है। अब इसे बदनसीबी कहिए या मयंक की बुरी किस्मत, धीरे धीरे उसके बर्ताव में काफ़ी बदलाव आने लगा। वो पहले जैसा बिल्कुल नहीं रहा,बात बात पर चिल्लाना, अपने काम का फ्रस्ट्रेशन मिताली और बच्चों पर निकालना,यही सब अब उसकी दिनचर्या बन कर रह गई थी। माता पिता के पूछने पर भी सही से जवाब नहीं देता था,बस हर समय गुस्से में रहा करता था।
न जाने उसके दिमाग़ में क्या चलने लगा था। उधर मिताली मयंक को ख़ुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करती पर सब पर मयंक पानी फेर दिया करता था। मिताली भी अब काफ़ी बुझी बुझी सी रहने लगी, मयंक का बर्ताव उसकी समझ से परे था। फिर भी वो सब कुछ चुपचाप सहती और परिवार को समेटने में लगी रहती। एक दिन मयंक आफिस से जल्दी आता है और मिताली से कहता है कि सामान बांध लो, तुम्हें अपने मायके छोड़ कर आता हूं, इतना सुन कर मिताली चौंक जाती है कि आख़िर माजरा क्या है, मयंक क्यों मुझे मायके ले जाने की बात कर रहा है। पूछने पर भी मयंक से मिताली को कोई जवाब नहीं मिला। और वही हुआ जिस बात का डर था, मयंक मिताली को उसके मायके छोड़ आया बिना कोई कारण बताए। और ऐसे ही कुछ दिन बीत गए मयंक ने मिताली का हाल चाल तक नहीं पूछा। मिताली को कुछ ठीक नहीं लगा तो उसने मयंक के आफिस फोन किया फिर जो हुआ उसकी मिताली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
आगे की कहानी जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ।
क्या मयंक मिताली से कुछ छुपा रहा है या फिर मामला कुछ और ही है।
जानते हैं इस कहानी के अगले अध्याय में

धन्यवाद 🙏
© Aphrodite