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आत्म-स्तर का प्यार : जब मन से हो निर्भार
प्रश्न:
क्या आप मानते हैं कि आपको किसी की आत्मा से प्यार हो सकता है?

उत्तर:
✍️ हम केवल यह मानते ही नहीं, बल्कि जानते भी हैं, कि- हमें किसी की आत्मा से प्यार हो सकता है। बल्कि यह कहें, कि- हमसे अब बस यही हो सकता है। हम संसार के लिए और किसी काम के न रहे। बस, प्यार… और प्यार ही प्यार।

इसका कारण यह है, कि- अपनी चेतना को हम मन से परे पराचेतन के आयाम में स्थापित कर सर्व के साथ एकत्व की अनुभूति कर चुके हैं। अब हम मनोदेह से परे आत्मरूप ही में विचरते हैं। जिस किसी के कम्पन हमारे शुद्ध प्रेम "Unconditional Love" के कम्पनों से एकसुर हो जाते हैं बस, फिर वे हमसे और हम उनसे बच नहीं पाते।

लेकिन इसके साथ ही हम शेष संसार से कट भी चुके हैं। क्योंकि- संसार में प्रेम के नाम पर मनोदेहिक वासना का खोटा सिक्का प्रचलन में है। जिसे असली सिक्के की पहचान हो चुकी है, वह अब खोटे सिक्कों के मायाजाल में क्यों उलझे भला?

हमारा आत्मिक प्रेम गगन में खिला चांद है, जबकि सांसारिक प्रेम, चांद का झील में दिखता प्रतिबिंब है।

हमारे इस आत्मा से आत्मा के प्रेम का ही यह कमाल है और सबूत है, कि- दूर दूर के आत्म-मित्र किसी भौतिक परिचय के अभाव में भी, हमारे अजीज हो गये हैं, और हमने जैसे अपनी एक अलग ही दुनिया बसा ली है।

हम तो आपको भी यही सलाह देंगे, कि- अपने प्रेम को कभी आत्मा के तल से नीचे मत उतारना वरना याद रखना: खाली हाथ आए थे, खाली हाथ ही लौट जाओगे।

संसार में केवल एक ही ऊर्जा सम्पूर्णता (fulfillment) का अहसास दिला सकती है हमें।

और वह है, मनोदेह से परे विशुद्ध प्रेम की ऊर्जा।

धन्य हैं वे महानुभाव, जो इस ऊर्जा से सरोबार हैं।🙏❤️