...

11 views

हाफ पैडल
हमने जिंदगी हाफ पैडल से शुरू की थी जहां हमारे पैर बिल्कुल जमीन से सटे और दाहिनी बाजू सायकल की सीट से जकड़े होते । जिंदगी की रफ्तार बस अपने हाथ - पैरों से ही तय हुआ करती थी । हाफ पैडल में ही जिंदगी फुल हुआ करती थी । छोटी सायकल हमें मयस्सर नहीं हुआ करती जिसपर हम सीधे फुल पैडल की जिंदगी शुरू कर पाते । शायद ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा यही था कि हाफ पैडल से ही शुरुआत हो और फुल पैडल हम पूरे एक्सपर्ट होकर ही मार सकें । हमारी जिंदगी का क्रम था - पैदल , हाफ पैडल और फिर फुल पैडल । हां , यही था हमारे विकास का अनुक्रम । इस विकास की यात्रा ने बेहद ही मजबूत नींव दे रखी थी जिंदगी को । अब सीधे फुल पैडल से शुरुआत होती है और वो भी गीयर के साथ और रफ़्तार हमारे हाथ - पैरों की काबिलियत से कहीं ज्यादा होती है और इसलिए नियंत्रण काफी जोख़िम भरा होता है । पहले खरोचें आया करती थीं जो कुछ ही पलों में जाने कहां गायब हो जाया करतीं और अब गहरे घाव हो जाया करते हैं जिनके निशान जिंदगी भर के लिए हुआ करते हैं । रफ़्तार वहीं तक ठीक है जहां तक वो हमारे नियंत्रण में हो । जिंदगी की रफ़्तार यदि हमारे नियंत्रण में ना हो तो घाव गहरे , बहुत ही गहरे हो जाया करते हैं जिसके निशान मिटाए नहीं मिटा करते ।
© राजू दत्ता