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तेरी-मेरी यारियाँ ! ( भाग-17 )
गीतिका :- खुश होकर,,,,, निवान तू सच्ची मे मेरे लिए कॉपी और किताब लेकर आया है।

निवान :- मुस्कुराते हुए,,,,सिर्फ यह ही नही और भी कुछ लाया हूँ।

गीतिका :- खुशी से चिल्लाकर,,,,,सच में निवान जल्दी दिखाना तू और क्या लेकर आया है।

निवान :- अपनी पेंट की जेब में से एक रबर और पेंसिल निकाल कर वह गीतिका को दे देता है।

निवान का लाया हुआ यह गिफ्ट गीतिका को बहुत अच्छा लगता है और वह निवान से बोलती हैं।

गीतिका :- निवान तू कितना अच्छा है तू मेरे लिए यह सब कुछ  लेकर आया है।

पार्थ :- मुँह बनाते हुए,,,,, अच्छा गीतिका मैं कुछ नही लाया तो मे बुरा हूँ।

गीतिका :- हँसते हुए,,मैंने ऐसा कब कहा की तू बुरा है। तू भी बहुत अच्छा है' बल्कि हम तीनों ही बहुत अच्छे है।

निवान :- नाटक करते हुए,,,,,वो कैसे गीतिका जरा विस्तार से बताना हमको कुछ समझ नही आया।
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