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कौन है जो त्यौहारों की सौम्यता छीन रहा है?
त्यौहार... कैसे थे ये त्यौहार, किसी ने शुरू किए और क्यों शुरू किए थे ये त्यौहार?
आज हर कोई त्यौहार की धूम में मग्न है। हर कोई त्यौहार का मज़ा लूटना चाहता है। पर किसने सोचा कि क्या है इन खुबसूरत त्यौहारों का असली मकसद...
आज हर कोई त्यौहारों का असली मतलब, उसका असली मक़सद भूलता जा रहा है।
नौ रात्रि में नौ दिनों तक माता की पूजा अर्चना। उनकी महिमा को बताना और संगीत तथा नृत्य से माता को अपनी श्रद्धा अर्पण करना।
गणेश महोत्सव में भगवान श्री गणेश जी को अपने घरों में स्थापित करना। उसकी सेवा करना उनकी पूजा अर्चना करना। बाप्पा मोरया को अपना अतिथि बनाने का सौभाग्य प्राप्त करना ताकि वो हमारे सुख दुःख करीब से देख पाए। और उन्हें दूर कर दे।
जन्माष्टमी महोत्सव के पूर्व में भगवान श्री कृष्ण के जन्म का आनंद साझा करना। उनकी बाल क्रीड़ा को याद करना।
दिवाली में भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी के वनवास काट कर अयोध्या लौटने की खुशी प्रगट करना। उनके स्वागत में दीप प्रज्ज्वलित करना।
और सभी उत्सवों का एक ख़ास मक़सद अपने अंदर की कला को सबके सामने प्रस्तुत करना। सभी के साथ खुशियां बांटना।
किंतु आज DJ culture ने सब बर्बाद कर दिया है। नौ रात्रि में न कोई लोकगीत या गायक, गणेश महोत्सव में न ढोल, तासे, नगाड़े या मंजीरे। ना दिवाली में प्यार बांटना और दीप प्रज्ज्वलित करना। बस जहां देखो वहां कानों को काटने वाले और दिल को दहला देने वाले DJ और Bass का शोर।
पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बजाय बस ध्वनि प्रदूषण फैलाते DJ culture और Bass का कर्कश शोर। जो ध्वनि प्रदूषण के साथ छोटे-बड़े, बच्चे - बूढ़े, बीमार या तंदुरुस्त इंसान या जानवर हर किसी को नुकसान पहुंचता है। कानों की श्रवण शक्ति कम होती है। दिमाग़ और नर्वस सिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सर में खिंचाव होता है। इंसान तथा जानवर की प्रवृति में कई बार हिस्सा को बढ़ाता है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन आता है।
DJ culture से पारंपरिक कलाकारों की आजीविका छीन गई है। उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया गया है। बीमार और बीमार होता है। दिल कमज़ोर होता है। यहां तक कि लोहे तथा सीमेंट से बनी इमारतें भी गिटार के तार सी तंतनाने लगती है, वहां आपके नाज़ुक दिल, दिमाग़ और बाल से पतले कानों के पर्दों की क्या मजाल है...
क्या हर त्यौहार में DJ culture ज़रूरी है... क्या हद से ज्यादा आवाज़ शोर-गुल और Bass ज़रूरी है... क्या हमें इस बेहूदे DJ culture को छोड़कर अपनी पारंपरिक सांस्कृति नहीं अपनानी चाहिए...

मुझे लगता है हां... हमें हमारी पारंपरिक संस्कृति को फिर ज़िंदा करने की ज़रूरत है... हमें हमारी संस्कृति को बढ़ावा देने की और उसे आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। ताकि भारत की असली संस्कृति टिकी रहे। भारत के असली कलाकार, भारत के लोकसंगीतकार, भारतीय संगीत यंत्र वादक, नाटककार, नूत्यकार और ऐसे सभी मूल कलाकारों का अस्तिव कायम रहे। इसलिए हर दृष्टिकोण से पारंपरिक संस्कृति को बढ़ावा देना और आगे बढ़ाना लाभदायक है।
© B. Talekar

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