...

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खुदा है ही नहीं...
एक बार एक व्यक्ति ने गर्मियों की छुट्टी मनाने के लिए एक बढ़िया सी नाव बनाई...
नाव का निर्माण होने के पश्चात वह अपने साथ जरूरी सामान लेकर समुद्र की ओर चल दिया ।
नाव में सवार वह शख्स अपने कार्यों की सारी व्यस्तता को भूल चुका था ।
अपनी नाव में बैठकर समुद्र की उठती हुई लहरों को देख कर बड़ा आनंदित हो रहा था...
तभी अचानक उसकी और एक लंबी सी लहर आते हुए दिखाई दी...
वह बहुत घबरा गया था...
इसके पहले कि वह कुछ सोचता ...
आती हुई लहर ने उसकी नाव को डुबोकर उसकी खुशियों पर जैसे पानी फेर दिया...
जैसा कि वह शख्स अपने साथ मे जरूरी सामान लेकर चला था...
लेकिन उस बड़ी सी लहर ने उसके सारे सामान को खुद में कहीं दुबौ लिया...
उस शख्स ने अपनी सुरक्षा के लिए एक जैकेट पहन रखा थी जिसके कारण वह डूबने से बच गया... समुद्र की लहरों ने उसे किसी टापू की ओर फेंक दिया...
वह टापू बिल्कुल सुनसान था... उसने सोचा कि ईश्वर ने जब मुझे बचा ही लिया है ... तो यहां से आगे जाने का रास्ता भी वही दिखाएगा...
अब वह जीवित रहने के लिए फल और अन्य चीजे खाने लगा...
एक दिन फलों को खाते-खाते उसके दिमाग में यह विचार आया कि अब अगर यहीं पर रहना है... यहीं पर जीवन बिताना है... तो क्यों ना रहने का एक अच्छा सा प्रबंध किया जाए...
उसने सारा दिन मेहनत करके एक झोपड़ी बनाई...
उसने झोपड़ी बनाने का काम पूरा कर लिया...
दिन ढलने ही वाला था कि वह शाम के भोजन की व्यवस्था के लिए जंगल की ओर रवाना हो गया...
तभी अचानक उस झोपड़ी पर बिजली गिर गई...
बिजली के गिरने से वह झोपड़ी राख हो गई...
जब उसने आकर देखा...
कि ईतनी मेहनत से बनाई हुई झोपड़ी जल चुकी है...
अब वह धीरे धीरे अपना धीरज खो रहा था...
भगवान पर से उसका विश्वास टूटने लगा था...
फिर अचानक आसमा की ओर देखकर वह खुदा पर चिल्लाने लगा...
कहने लगा कि "खुदा है ही नहीं"
अगर तू होता तो मेरे साथ ऐसा नहीं करता...
मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था... जो मेरे साथ यह सब हो रहा है...
वह भीतर से टूट चुका था...
तभी अचानक उसके पास एक व्यक्ति आया...
और कहने लगा कि हम तुम्हें बचाने आए हैं...
उसने उसकी ओर देखा...
पूछा कि आप कौन हैं? और आपको कैसे पता चला कि मैं यहां पर फंस गया हूं...
तो जो बचाने आया था वह हस कर कहने लगा... मैं एक गोताखोर... मेरा कार्य पूरा होने के बाद जब मैं यहां से गुजर रहा था... तो मेंने देखा कि इस जंगल की ओर आग की लपटें दिखाई दी...
आग की लपटों को देखकर टापू पर आया हूं...
में यहां तुम्हें बचाने आया हूं
तुम ही ने तो आग जलाकर हमें आने का इशारा किया...
इस आग की लपटों को देखकर ही तो मैं यहां पर आया हूं...

वह शक्स जो भीतर से टूट चुका था...
वह फूट-फूट कर रोने लगा...
खुदा के लिए कहे गए अपने शब्द उसे पीड़ा दे रहे थे...
उसने अपनी इस बर्ताव के लिए खुदा से माफी मांगी...
खुदा को शुक्रियादा किया...

अब वह व्यक्ति यह मानने लगा था कि "खुदा है"

और जो कुछ भी करता है ...
हमारे भले के लिए ही करता है ...

कहानी का निष्कर्ष:- ईश्वर की निष्ठा, उस पर विश्वास अंतिम समय तक आवश्यक है...
उसके द्वारा की गई हर एक घटना हमें पहले से ज्यादा बुद्धिमान, समझदार, जिम्मेदार और योग्य बनाने की होती है।

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