भोजन से आरोग्य भाग-1
(1) पवित्रता
‘धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्’
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-प्राप्ति में श्रेष्ठ मूलकारण शरीर का नीरोग होना ही है। कहा भी गया है-पहला सुख निरोगी काया। दूसरी बात- जान है तो जहान् है। रोगी व्यक्ति चारपाई में पड़े-पड़े अकेले ही पीड़ा सहने और कहराने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। खुद उसके परिवार के लोग भी उसकी उपेक्षा करने लगते हैं। अतः दोस्तों स्वास्थ्य रक्षा हमारा प्रथम कर्त्तव्य बनता है। स्वस्थ शरीर में...
‘धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्’
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-प्राप्ति में श्रेष्ठ मूलकारण शरीर का नीरोग होना ही है। कहा भी गया है-पहला सुख निरोगी काया। दूसरी बात- जान है तो जहान् है। रोगी व्यक्ति चारपाई में पड़े-पड़े अकेले ही पीड़ा सहने और कहराने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। खुद उसके परिवार के लोग भी उसकी उपेक्षा करने लगते हैं। अतः दोस्तों स्वास्थ्य रक्षा हमारा प्रथम कर्त्तव्य बनता है। स्वस्थ शरीर में...