जीवन का संघर्ष
क व्यक्ति को तितली का एक कोकून ए मिलाया जिसमें से तिला वाहक लिए प्रयत्न कर रही थी। तितली के प्रयासों से कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया था, जिसमें से बाहर निकलने को तितली आतुर तो थी लेकिन वह छेद बहुत छोटा था और तितली का उस छेद में से बाहर निकलने का संघर्ष जारी था। उस व्यक्ति से यह देखा नहीं गया और वह जल्दी से कैंची ले आया और उसने कोकून को एक तरफ से काट कर छेद बड़ा कर दिया। तितली आसानी से बाहर तो आ गई लेकिन वह अभी पूरी तरह विकसित नहीं थी। उसका शरीर मोटा और भद्दा था तथा पंखों में जान नहीं थी। दरअसल प्रकृति उसे कोकून के भीतर से निकलने के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया के दौरान उसके पंखों को मजबूती देने, उसकी शारीरिक शक्ति को बढ़ाने व उसके शरीर को सही आकार देने का कार्य भी करती है। जिससे जब तितली स्वयं संघर्ष कर, अपना समय लेकर कोकून से बाहर आती है तो वह आसानी से उड़ सकती है। प्रकृति की राह में मनुष्य रोड़ा बन कर आ गया था, भले ही उसकी नीयत तितली की सहायता करने की रही हो। नतीजन तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और जल्द ही काल कवलित हो गई।
मंत्रः संघर्ष के बाद ही कोई भी जीव निखर कर आता है और उसके दम पर ही जीत हासिल होती है।
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