kinnar
ईश्वर ने स्त्री को रचा, कोमलता, सुघड़ता, प्रेम, कला के रंग भरे पर कुछ था जो छूट सा गया...
फ़िर ईश्वर ने पुरुष को रचा, कठोरता, जटिलता, पौरुष भरते हुए कठोर से रंग भरे पर अब नृत्य, संगीत जैसे आयाम पीछे छूट गए...बड़ा परेशान था सृजनहार,इन विपरीतगामी रंगों को कैसे संग संग लाए...हाथों में सृजन तूलिका लिए बैठा परेशान था, कि मां अरिष्टा और कश्यप ऋषि ने ब्रह्म के पैर के अंगूठे की छाया में कुछ नवीन रचा...जिसमें पुरुषत्व के गहरे रंग तो थे ही पर, प्रेम और कला का समागम भी था जिसमे,कोमलता, कठोरता के कठोर आवरण में यूँ छुपी थी ज्यूँ नारियल पानी को छुपाकर सहेजता है और जटिलता, सुघड़ता के साथ उसी तरह प्रवाहमान थी ज्यूँ तीखे मोड़ों पर भी नदी आराम से गुजर जाती है .....
फ़िर ईश्वर ने पुरुष को रचा, कठोरता, जटिलता, पौरुष भरते हुए कठोर से रंग भरे पर अब नृत्य, संगीत जैसे आयाम पीछे छूट गए...बड़ा परेशान था सृजनहार,इन विपरीतगामी रंगों को कैसे संग संग लाए...हाथों में सृजन तूलिका लिए बैठा परेशान था, कि मां अरिष्टा और कश्यप ऋषि ने ब्रह्म के पैर के अंगूठे की छाया में कुछ नवीन रचा...जिसमें पुरुषत्व के गहरे रंग तो थे ही पर, प्रेम और कला का समागम भी था जिसमे,कोमलता, कठोरता के कठोर आवरण में यूँ छुपी थी ज्यूँ नारियल पानी को छुपाकर सहेजता है और जटिलता, सुघड़ता के साथ उसी तरह प्रवाहमान थी ज्यूँ तीखे मोड़ों पर भी नदी आराम से गुजर जाती है .....