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गरीब पिता कि लाचारी
दीप अपने माता पिता के साथ एक गांव में रहता था। उसका परिवार बहुत गरीब था।उसके पिता गांव में ही सब्जी की दुकान लगाते थे और उसकी माँ गृहणी थी। दीप बहुत ही लापरवाह और आलसी था। उसके सपने तो बहुत बड़े थे लेकिन, वह उनको पूरा करने के लिये कभी कोई ठोस कदम नही उठाता था। जब कभी कुछ करने के लिए सोचता भी था तो लोगों की बातें सुनकर फिर रुक जाता था। उसे लगता था कि वो कुछ भी नही कर सकता, क्योंकि उसके पास न तो पैसा है और न ही अवसर। उसका गांव भी काफ़ी पिछड़ा था।
दीप की माँ अक्सर बीमार रहा करती थी।उसके पिता जो भी पैसा कमाते थे वो उसकी माँ के इलाज में ही खर्च हो जाया करता था। बीमारी से एक दिन उसके माँ की मृत्यु हो गई। उसका परिवार अब बिल्कुल बिखर गया था। छोटी-छोटी बातों में उसकी, उसके पिता से कहासुनी हो जाया करती थीं। दीप के पिता जब भी उसे कोई नौकरी करने के लिए कहते तो वो यही कहता कि उसके पास वो सब साधन नही है जो दूसरों के पास है। पैसों के अभाव में, वो कुछ नही कर सकता। उससे नाराज़ होकर उसके पिता ने उसे पैसे देना भी बंद कर दिया। उसे लगने लगा कि उसके पिता उसे बोझ समझने लगे हैं।
एक दिन तो ऐसा हुआ कि उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया और बोला कि जब तक तुम अपने पैरों पर खड़े नही हो जाते इस घर की तरफ देखना भी मत। पिता की ये बात उसके मन मे घर कर गई। अब उसके मन में एक ही बात बैठ गई कि अब वो अपने आप को अपने पिता को साबित कर के रहेगा। और जब तक वो एक सफल इंसान नही बन जाता तब तक अपने घर नही आएगा चाहें जो भी हो जाये। इसके बाद वो शहर चला गया।
तीन साल की कड़ी मेहनत करने के बाद एक सफ़ल बिजनेसमैन बनकर जब वो अपने घर आया तो उसने देखा कि, जहाँ उसका घर था आज वहाँ पर एक स्कूल बन गया है। पड़ोस के एक बुजुर्ग, जिसे वो चाचा कहता था उसे देखकर उसके पास आते हैं और उसे बताते है कि, उसके पिता की मृत्यु ढाई साल पहले ही हो गई थी। और उसे एक पत्र देते हैं, जो कि उसके पिता ने उसके लिए अपने आख़िरी वक़्त में लिखा था।
दीप जब पत्र पढ़ता हैं तो उसमें लिखा था।
"दीप मेरे पुत्र मुझे कैंसर है, ये बात मुझे पहले ही पता थीं। मैं ज्यादा दिन तक तुम्हारे साथ नही रह सकता था। और तुम्हारी माँ के इलाज में पहले ही मैंने ये घर गिरवी रख दिया था। मुझे तुम्हारे भविष्य कि चिंता थी, मैं तुम्हें खुश देखना चाहता था। इसलिए हमेशा तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए डाँटता रहता था। मैं तुम्हें एक अच्छी जिंदगी नही दे पाया।
मुझे माफ़ करना, तुम्हारा पिता।
दीप कि आंखों में अब बस आँसू थे और कहने के लिए शब्द नही..........!

कई बार हमें ऐसा लगता है कि पर्याप्त साधन के अभाव में हम कोई भी काम नही कर सकते हैं। जबकि हम ये भूल जाते है कि जहाँ चाह है, वहाँ राह हैं।
......और हम बिना सच जाने दूसरों के बारे में अपनी राय बना लेते हैं। लेकिन जैसा दिखता है वैसा होता नही।

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