...

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कितने सावन बीते
तुम्हारे लौटके आने के , इंतजार में ना जाने कितने सावन बीते।
कोई तो सावन ऐसा हो , जो मेरा सिर्फ़ तुम्हारी ही बाहों में बीते।

बिना तुम्हारे मुझको ,अब यह ज़िंदगी सूनी-सूनी सी लगने लगी है।
अब तो तुम्हारी कमी , मुझको हर पल ही महसूस सी होने लगी है।

जब भी तुम्हारी याद आती है ,मुझे तो हिचकियाँ सी आने लगती हैं।
तुम आ जाओ लौट ,ये ज़िंदगी अब कुछ पल की मेहमान लगती है।

तुम क्या जानो , तुम्हारी यादों में मेरे दिन और रात कैसे गुजरते हैं।
तुम कब आओगे लौट कर ,हम तो कब से ही पलके बिछाए बैठे हैं।

क्या बताऊँ तुम्हें , की तुम्हारी कमी मुझे कितनी खलने लगी है।
नही लगता कहीं मन मेरा , तुम्हारी यादें ही मुझे परेशान करती हैं।

अब पूछती हैं , मुझे सखियाँ मेरी की कहाँ गया तेरा वो हमनसी।
जो कहता था , की तुम ही हो मेरी ज़िंदगी की एकलौती जागीर।

तुम्हारे लौटके आने के , इंतजार में ना जाने कितने सावन बीते।
कोई तो सावन ऐसा हो , जो मेरा सिर्फ़ तुम्हारी ही बाहों में बीते।