धंधेवाली
खुशनुमा मौसम था। आफिस में ज्यादा काम न होने के कारण आफिस से जल्दी निकल कर जल्दी घर पहुंचने की कोशिश थी। सोचा आज डिनर में कुछ स्पेशल हो जाये। इसी सोच में जा ही रहा था कि तभी fm पर गाना बजा, "जिंदगी एक सफर है सुहाना"। मन ही मन आनंदित होते हुए सोचा, शायद इसे ही कहते हैं, सोने पर सुहागा होना। आनंद एकदम चरम पर था। मैं जल्दी से घर पहुंचना चाहता था पर साथ ही ये माहौल, ये पल भी अच्छे से जीना चाहता था।
सहसा मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी। उम्र शायद 28 से 30 के बीच होगी। बिखरे से बाल, मैले कुचैले कपड़े,सीने से दुपट्टे से सहारे एक नवजात शिशु को टांगे प्रश्नबोधक स्थिति में खड़ी थी। उसकी नजर भी मेरी धीमी पड़ती रफ्तार गाड़ी पर पड़ी और वो चेहरेओर उम्मीद और आंखों में चमक लिए मेरी गाड़ी की ओर...