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tusi ho great bade papa..Ranjankumar Desai

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' स्नेहा ! मेरी प्यारी बेटी !'

तुम तो बिल्कुल मजे में होगी ! इस उम्मीद के साथ इस खत के जरिये तुम्हारी गलतफहमी दूर करने की कोशिश करता हूं .

तुमने तो बाप बेटी के रिश्ते की धज्जियां ही उड़ा दी थी . उस का घोर अपमान किया था . फिर भी आंसू में कलम भिगोकर तुम से सारी बातें कर के तुम्हारी आँखों के सामने फैला अंधकार दूर करने का नैक प्रयास कर रहा हूं .

मेरा तुम्हारे प्रति का लगाव निष्पाप था , दूध जैसा साफ था . उस का ढिंढोरा पीटना नहीं चाहता हूं . लगाव होना एक कुदरती बात हैं जो भगवान का कारोबार हैं उस मे अपनी एक भी नहीं चलती . यह एक एहसास की बात हैं . मुझे अफ़सोस हैं उस का एहसास करवाने में नाकाम साबित हुआ . और मुझे ढिंढोरा पीटने पर विवश कर दिया .

' स्नेहा क्यो रूठ गई ? '

तुमने तो मुझसे कुछ बताये बिना मुझसे मुंह फेर लिया था . मैं तुम से बात करने हकीकत जानने के लिये काफी उत्सुक हो रहा था , बेताब था . तुम्हारी नाराजगी जानना था जो मेरा हक भी बनता था और तुम्हारा कर्तव्य .

तुमने तो मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया था . इस बात से मैं काफी असमंजस महसूस कर रहा था . अपनी बात कैसे कहूं ? बड़ी समस्या थी . प्रत्यक्ष रूप से बात करना चाहता था लेकिन तुमने तो मुझे कोई भी मौका प्रदान नहीं किया . आखिरी विकल्प खत ही था जिस का मुझे सहारा लेना पड़ा हैं .

पत्रकारित्व क्षेत्र में मुझे हुए अनुभवों का मैंने ब्यौरा दिया था. मैं इस लाईन से बाहर निकलने के लिये पूरी कोशिश कर रहा हूं. लेकिन तुम्हारा साथ खो जायेगा
. इस डर से मैं कोई फैंसला नहीं कर पा रहा हूं. "

"तुमने तो पलभर में मुझ से किनारा कर लिया.. पर मैं तुम्हे भूला नहीं पा रहा हूं. तुम्हारी छबि मेरे दिल में अंकित हो गईं हैं. तुम्हारे साथ हुई बातचीत के एक एक शब्द मेरे कानो में दस्तक दे रहे हैं.."

" तुम्हे याद हैं? मैंने एक बार ५० पैसे का सिक्का दो हथेलियों के बीच दबोचकर सवाल किया था. "

" स्नेहा! प्लीझ बताओगी? हेड या टैल? "

" जवाब देने से पहले तुमने क़ुतुहलवश सवाल किया था!"

" ऐसा क्यों पूछ रहे हो? "

" पहले जवाब दो बाद में मैं सब कुछ बताऊंगा. "

" टैल! "

" तुम्हारे मुंह से अपेक्षित जवाब सुनकर मुझे बड़ी ख़ुशी प्राप्त हुई थी. "

" शाम को दफ्तर से साथ निकलते समय मैंने तुम्हारे सवाल का जवाब दिया था!!"

" स्नेहा! जिंदगी के कठिनतम फैंसले मैं इसी तरह ही लेता हूं. मैं अपनी असली लाईन में लौट जाने की सोच रहा था. लेकिन तुम्हारी वजह से मैं कुछ तय नहीं कर पाता. में काफ़ी अवढव में था. टैल आया तो मैं इस लाईन को अलविदा कर दूंगा.. मैंने मन ही मन तय कर लिया था. तुम शादी के बाद जोब चालू रखनेवाली हो. तो हमारा रिश्ता जारी रहेंगा. "

" लेकिन होनी को जाने क्या मंजूर था? मुझे एक्सपोर्ट इम्पोर्ट लाईन में जोब मिल गया था. मुझे इस बात से ज्यादा ख़ुशी नहीं मिली थी क्यों की ऊस पर तुम्हारी जुदाई का रंज मिल गया था..

" पिछले दिनों तुम्हारा रवैया भी कुछ बदल सा गया था. तुम मुझ से पीछा छुड़ा रही थी. तुम्हारा व्यवहार कई सवाल जगा रहे थे. "

शुरू में तो उसे मेरा भ्रम समजकर मैंने ऊस पर गौर नहीं किया था.

फिर लगातार ऐसा वर्ताव ने मेरे शक को यकीन में तब्दील कर दिया.

फिर भी मैंने मन की तसल्ली के लिये एक कागज के टुकड़े पर लिखकर तुझे सवाल किया था.

" स्नेहा! क्या एक बाप बेटी के नाते हम दोनो पांच दस मिनिट साथ बैठकर बातें नहीं कर सकते? "

" मेरे इस प्रस्ताव का तुमने क्या अर्थ निकाला था? यह मैं समझ नहीं पाया था..मेरी नियत को लेकर तुम्हे कोई संशय हुआ था.. ऐसा मानने पर विवश कर दिया था.

सच्चाई क्या थी? यह जानना अति आवश्यक था. मेरी कोई गलती थी तो उसे जानना और सुधारना उतना ही जरुरी था. अगर मेरी कोई गलती थी तो उसे सुधार भी लेता. "

मैं तुम्हे समझना चाहता था. बाप बेटी के रिश्तों को मजबूती देना चाहता था. लेकिन तुमने मुझे कोई मौका नहीं दिया. इस बात का बेहद अफ़सोस हो रहा था.

मैंने इस लिये राहुल के जरिये तुम्हे मेसेज भेजा था..

" शाम को मिलकर जाना! "

लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया!

दूसरी बार मैंने मुंह पर तुम्हे गुजारिश की थी..

फिर भी मेरा अनादर किया.

पहली बार मुझे ऐसा महसूस हुआ. तुम्हे मुझ से कुछ लेना देना नहीं था. फिर भी मेरी भावुकता उसे स्वीकार ने को तैयार नहीं थी.

यकायक ऐसा क्या हो गया था?

क्या मेरी चिट्ठी ने कोई संदेह जगाया था?

मैंने चिट्ठी लिखी थी. इस बात पर किसी ने तुम्हे भड़काया था?!

क्या वजह थी?

तुमने यह बताना जरुरी भी नहीं समजाया.

क्या मुझ से कोई बड़ा अपराध हुआ था? कम से कम यह तो बताने का सौजन्य दिखाया होता तो? मैं मानसिक परिताप से तो बच जाता!!

मेरी राखी सिस्टर को तुम जानती हो. तुझे लिखी चिट्ठी
के बारे में उसे खबर हैं. ऊस ने हमदर्दी जताते हुए मुझे सहज़ से समजाया था.

" स्नेहा को तुम्हारे प्रति कोई लगाव होगा तो वह निश्चिंत तुम्हारे पास आयेंगी.. हो सकता हैं. ओफिसमें किसी ने तुम्हारे खिलाफ भड़काया हो. "

आशा बहुत ही गहरी समज रखती हैं. उसने अपनी बात लिख कर देने पर एतराज जताया था..ऊस ने ऐसा न करने की हिदायत भी दी थी.

मेरी लागणी एक तरफ़ा होने की आशंका उभर कर बाहर आई थी. तुम्हे मेरे प्रति कोई लगाव न होने का यह संकेत था. तुमने कभी मेरी लागणी को समर्थन दिया होता! लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था. तुमने तो स्टाफ में भी गिनती नहीं की थी. फिर भी मेरा तुम्हारे प्रति विश्वास अटल था.

" स्नेहा! मैं बहुत ही शर्मीले प्रकार का आदमी हूं. किसी के साथ और वह भी किसी लड़की के साथ जल्दी धुलमिल नहीं सकता हूं.

मैं हरदम रिश्ते बनाने की ताक में रहता हूं. मुझे रिश्ते बांधने में फावट नहीं थी. लेकिन मैं कभी किसी से रिश्ता तोड़ने के पक्ष में नहीं होता था. मैंने हमेशा रिश्तों की नजाकत को समजा हैं ऊस को अहमियत दी हैं, सराहना की हैं. ऊस की मिशाल हैं आशा.

तुम्हारे प्रति भी मुझे वैसा ही अपनापन का एहसास जगा था जिस ने मुझे जरूरत से ज्यादा उत्साहित कर दिया था. मैं तुम से बात करने को विहवल हो जाता था.

तुम्हारी एक मधुर मुस्कान मेरे भीतर खुशी भर देती थी.

जाने दो अब इन सब बातों का क्या फायदा हैं? मुझे तो शिकायत करने का अधिकार भी नहीं बक्शा हैं.

मैं बस एक बार तुम्हारे दिल को टटोलना चाहता था. तुम्हारे साथ ही नहीं बल्कि तुम्हारे मंगेतर के साथ भी एक अनूठा रिश्ता जोड़ना चाहता था.. लेकिन मैं एक अहम बात भूल गया था. रिश्ते किसी के मोहताज नहीं होते..

आशीर्वाद कहानी में मैंने अपने रिश्तों को काफ़ी ऊँचा ले जाने का प्रयास किया था. मैंने वैसा ही सपना देखा था जो कपोल क्लपित साबित हुआ था.

मैं बसाना चाहता हूं स्वर्ग धरती पर
आदमी जिस में रहे बस आदमी बनकर

इस वजह से मैंने राहुल के साथ फ़िल्म की दो टिकिट भी भेजनें का विचार किया था. लेकिन तुम्हारे व्यवहार ने मुझे रोक लिया था..

सच्ची लागणी को कोई सबूत की आवश्यकता नहीं होती. ऊस का एहसास खुद ब खुद हो जाता हैं.

मेरे ह्दय के भावो को मैंने आशीर्वाद कहानी में चित्रित करने का संनिष्ट प्रयास किया था.

इस कहानी के जरिये मैंने अपनी बहुत सारी बातें तुम तक़ पहुंचाने की कोशिश की थी. कहानी की शुरुआत एक सच्चाई थी. ऊस में मैंने कल्पना के रंग भर दिये थे.

क्या मेरी कहानी में कुछ अनुचित बात थी?

क्या मेरी चिट्ठी कोई गंदे इरादे का प्रमाण पत्र था?

क्या मेरी कोई बात या मजाक से तुम्हारी भावना को ठेस लगी हैं?

ऐसे ढेर सवाल मेरे भीतर उठ रहे हैं.

तुम्हे किस के साथ बोलना हैं? किस के साथ उठना बैठना हैं? किस के साथ संबंध रखने हैं? यह तुम्हारा निजी मामला हैं. ऊस में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता. लेकिन बिना वजह किसी का अनादर करना भी तो न्याय नहीं हैं.

मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सोचता रहता हूं. मेरी समज के मुताबिक पीछे मुड़कर नहीं देखा हैं. बस अफ़सोस केवल इतना हैं. तुमने मुझे कुछ भी बताना जरूरी नहीं समजा.. और गलतफहमी की दीवार मजबूत होती गईं. तुम्हारे व्यवहार से मैं सदैव वेदना में जलता रहा हूं! यह उपहार मुझे किस ख़ुशी में दिया हैं?

मैंने तुम्हे अपनी बेटी का दर्जा दिया था.. ऊस नाते भी तुम्हारा अधिकार एवम कर्तव्य था.

तुम पुराने ख्यालों की तो नही.. सब के साथ बात करती हो!! फिर मेरे साथ क्यों ऐसा सौतेला व्यवहार?!

तुम समय की अहमियत समजती हो. अपनी फर्ज निभाती हो. यह मेरे लिये गर्व का विषय था.तुम्हारी नेकदिली मेरा गरूर बन गया था.

शायद तुम्हारे बोस ने कोई निजी वजह से तुम्हे मुझसे दूर रखने का कोई कपट किया हो.

तुम भले ना मानो. लेकिन एक बात निर्विवाद हैं. तुमने मुझे नकारा हैं. फिर भी तुम्हारे प्रति लागणी की मात्रा दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी.

कोई किसी को बहन नहीं मानता, बेटी नहीं बनाता. मेरी बातों में तुम्हे किताबीपन नजर आया होगा. अपनी खुद की दो बेटियां होने के बावजूद कोई पराई लड़की को क्यों बेटी मानेगा?

लागणी किसी के बस में नहीं होती. यह झरना कब कहाँ और किस पर बरसेगा? यह कहना मुश्किल हैं. मेरे दिल में तुम्हे देखकर लागणी का झरना बहने लगा था. यह ईश्वर की मेहरबानी थी.. आशीर्वाद कहानी भी उसी की निपज थी.

जिसे तुम केवल कहानी समजकर भूल गईं थी.. के कहानी का संदेश समज पाई थी! यह बात मेरे दिल को टटोल रही हैं.

मेरी जिंदगी में मैंने केवल दो ही स्त्री को दाखिल होने दी हैं. एक तो मेरी जीवन संगिनी.. और दूसरीे मेरी मुंह बोली बहन आशा. इन दोनो में एक ही बात समान थी

दोनो ने पहली ही मुलाक़ात अपना होने की उम्मीद जगाई थी.

पहली नजर में दोनो ने एक अटूट रिश्ते की नींव रखी थी.

रेखा में मुझे अपनी जीवन साथी नजर आई थी.

और वही सही साबित हुआ था.

आशा ने भी एक सपना जगाया था. वह मेरी बहन की कमी पूरी करेगी. और यह भी सच साबित हुआ था..

यह दोनो मेरे लिये बड़ी उपलब्धि थी जिस की वजह से मैं अपने आप को खुश नसीब मानता था..

इन दोनो को लेकर मैं तुम्हारे बारे में भी ज्यादा आशावादी हो गया था. तुम भी मेरे दिल में एक बेटी की जगह ले चूकी थी.

लेकिन इस बार मैं नाकाम साबित हुआ.. मेरा विश्वास झूठा साबित हुआ. तुम मेरी बेटी बनोगी.. यह आश
नाकाम हुई.

मेरी सोच गलत होने का मुझे अफ़सोस हो रहा हैं. मेरा ऐसा मानना था.. अगर हम दोनो कोशिश करते तो इस रिश्ते को नया आयाम दे पाते थे.. रिश्ते तोडना या बनाना ईश्वर की मर्जी के आधीन होता हैं. इस में हमारी एक नहीं चल सकती.

आशीर्वाद कहानी को तुमने सराहा था. पसंद की थी
स्नेहा कौन हैं? सवाल भी किया था.. तुमने कहानी की नायिका के बारे में भी पूछताछ की थी. वोह तुम्ही हो यह जानकर खुशी जाहिर की थी. जिस ने मुझे विश्वास दिलाया था. तुम मेरी भावना से इत्तेफ़ाक़ रखती हो.

तुम्हारे मंगेतर का मैंने अलग नाम रखा था.

ऊस पर तुमने बताया था.. ऊस का नाम कमलाकर हैं..

ऊस ने उम्मीद की किरण जगाई थी.

तुम्हारे साथ हुए वार्तालाप की वजह से मैं ख़ुशी के झूले में झूलने लगा था. कहानी पढ़ने के बाद उसी स्नेहा के अंदाज में तुमने सवाल किया था!!

" आप कैसे हो? "

यह सुनकर मैं आनंद विभोर हो गया था.

तुम्हारी सहेली ने भी मेरी मज़ाक की थी..

" स्नेहा को बेटी माना हैं उसकी शादी का खर्चा भी उठाना पड़ेगा! "

" आधा क्या मैं पूरा खर्चा उठाऊंगा.. "

ऊस की बातों ने मुझे नैतिक समर्थन दिया था.. और मैंने खुश मिजाज मुद्रा में कह दिया था.

दूसरी बार तुम्हारी उसी सहेली ने मुझे देखकर आवाज देते हुए कहां था.

" स्नेहा! तुम्हारे डैडी आये हैं!!"

यह सुनकर मुझे अपनी मंज़िल सामने ही नजर आई थी. जो तुम्हारे बदले हुए व्यवहार ने किताबी साबित कर दी थी.

पहली उपन्यास की ख़ुशी में मैंने एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था. हकीकत में तुम्हारा मेरी जिंदगी में दाखिल होना एक बहुत बड़ी बात थी. उसी मनाने के लिये मैंने उपन्यास प्रकाशन के नाम पार्टी का आयोजन किया था

इस मौके पर मैंने तुम्हे मंगेतर के साथ आमंत्रित किया था. जिस पर तुमने खुलासा किया था :

" शादी के पहले हम साथ में कहीं नहीं जा सकते!! "

मैंने अपनी बीवी के सामने ऊस का परिचय दिया था..

" यह हैं आशीर्वाद कहानी की नायिका!! "

पार्टी के बाद तुझे मुझ में कोई बदलाव नजर आया था.. यह बात मुझे मछली के कांटे की तरह चुभती रहती हैं.

मुझे देखकर तुम्हारा इधर उधर होना मुझे लगातार तंग करता हैं फिर भी तुम्हारे प्रति मान सन्मान की मात्रा बढ़ती ही जा रही हैं.

याद हैं स्नेहा? एक बार मैंने मज़ाक में था..

" मुझे अपनी शादी में बुलाओगी न?"

ऊस पर तुमने कहां था: " यक़ीनन "

यह एक औपचारिकबात थी लेकिन तुमने विश्वसनियता जवाब दिया था.

लेकिन शादी के समय मैं कौन तुम कौन वाला माजरा हो गया था. तुम्हारे पास मेरा अतापाता था. फोन नंबर भी था फिर भी मुझे शादी में बुलाया नहीं था. इस बात से मुझे बहुत बूरा लगा था.

मेरे दिमाग़ में तुम्हारी शादी की तारीख बराबर संचित हो चूकी थी.. मैंने काफ़ी इंतजार किया था. लेकिन तुम्हारा कोई न्योता नहीं मिला.मेरी बीवी को भी मैंने तुम्हारी शादी के बारे में बताया था. लेकिन तुमने तो मुझे आशीर्वाद देने के अधिकार से वंचित कर दिया.

ऊस पर बीवी ने जो कहां था. वह इस दुनिया की एक बड़ी सच्चाई थी.

" कोई किसी को प्यार नहीं करता हैं! आप तो बावले हो. जरा कोई मीठा बोलता हैं तो पिघल जाते हो. "

और पहली बार मैंने अपनी बीवी की बात को माना था और ऊस की माफ़ी भी मांगी थी.

माना मैंने पत्रकारित्व क्षेत्र को अलविदा कर दिया था. फिर भी तुम मुझे शादी में आमंत्रित कर सकती थी.

आशीर्वाद कहानी में मैंने कल्पना का लिबाश पहनाकर अपने रिश्तों को सजाया था. लेकिन अफ़सोस कहानी का अंत और हमारा अंत एक नदी के दो किनारे साबित हुए थे.

कहानी में मैंने आशावाद जगाया था.. हमारे रिश्तों को हर कोई स्वीकृति देगा.. बाकी को तो छोड़ो. लेकिन तुमने ही उसे नहीं स्वीकारा.

कहानी का एक संवाद हर पल मेरे कानो में दस्तक देता हैं.

" डैडी! आप बीमार हैं तो क्या हुआ? हम आप को टेक्सी में स्नेहा दीदी की शादी में ले जायेंगे. हम जानते हैं आप स्नेहा दीदी को बहुत ही प्यार करते हैं. "

लेकिन अफ़सोस! कल्पना और हकीकत में मिलो की दूरी होती हैं. वह कभी नहीं मिल पाते. तुम्हारे रवइये ने मुझे ऐसा मानने को विवश किया था.

एक बार मेरी बीवीने गाजर का हलवा बनाया था. वो मेरा पसंदीदा था. फिर भी बिना चखे पुरे का पूरा हलवा तुम्हे दे दिया था., बिल्कुल एक जनक पिता की भ्रान्ति.. लेकिन तुम्हे तो शायद यह पता भी नहीं था.

यह एक ही बात तुम्हे सच्चाई से अवगत करा सकती थी. लेकिन तुमने मेरे बारे में सोचना जरुरी नहीं लगा था.

मैं तुम्हारी शादी को याद करता था. ऊस वक़्त मेरी भीतर एक ही गीत गूंजता रहता था.

" जाओ लाडली पति के घर तुम सुखी रहो! "

" यह मेरे दिलकी, अंतरात्मा की आवाज थी. फिर भी तुमने मेरी भावना का अनादर किया. "

" क्या किसीने तुम्हे मेरे खिलाफ भड़काया था.? "

क्या में बदनाम बस्ती में जाता था.

इस बात का हवाला दिया था?

कुछ तो बात थी. जो भी थी. तुम मुझे बता सकती थी..

मेरे घर आई ऊस के दूसरे दिन मैंने तुझे सवाल भी किया था :

" क्या मेरी अनुपस्थिति में तुम्हे किसी ने कुछ अनापशनाप बात की थी? "

" पूरी ओफिस में सिर्फ तुम्हे और राहुल को ही क्यों आमंत्रित किया था? क्या ऊस के पीछे मेरी कोई गंदी मुराद थी?? "

आशीर्वाद कहानी के जरिये मैंने अपनी जिंदगी की काली बाजु से अवगत कराया था. मैं वेश्या गमन करता था. '

वेश्या के पास जाना अवैध हैं, गलत हैं मैं जानता था. लेकिन ऐसा न करता तो मैं बलात्कार जैसा गंभीर गुनाह कर बैठा होता.

मुझे शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं था.. लेकिन एक बार तुमने मुझे देखकर हल्की सी मुस्कान बिखेरी थी. ऊस बिना पर तुम से पूछने का साहस कर रहा हूं.

तुमने ऐसा क्यों किया? मैंने ऐसा क्या किया था?? लोगो के मुंह से सुनने मिला था.

तुमने मेरे खिलाफ तुम्हारे बोस से शिकायत की थी.

मैं सूनी सुनाई बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं करता हूं.. लेकिन तुम्हारे बदले हुए व्यवहार ने मुझे सच्चाई जानने के लिये विवश किया था.. हो सकता हैं यह मेरा भ्रम भी हो सकता हैं.

आशा को मेरे पर अनूठा भरोसा हैं. रेखा को भी पूर्ण आस्था हैं.. सभी का विश्वास बरकरार कर के हम कई सालों से यह पवित्र नाता निभा रहे हैं. एक दूसरे को मिलते हैं, घर में जाते हैं सब लोग साथ में घूमने या पिकनिक पर भी जाते हैं. कई फिल्मे भी हमने सबने साथ साथ देखी हैं.

लागणी के मुआमले में हमे दो ही व्यक्ति की भावना का ख्याल रखना होता हैं.. उन को कोई दुःख या तकलीफ नहीं देनी चाहिए. विनय (कमलाकर )और मेरी बीवी रेखा को कोई भी तकलीफ नहीं देनी चाहिए..

सच्चे प्यार के बलभूते हम विश्वास और स्नेह का अनमोल माहौल खड़ा कर सकते हैं..

तुम्हारे प्रति के अनुठे स्नेह के बलभूते मैं उमदा साहित्य का सर्जन करने के सपने देख रहा था. लेकिन तुमने तो ' No antry ' का साइन बोर्ड लगाकर मुझे आगे बढ़ने से रोक लिया. मुझे चोटिल कर दिया.

एक लागणी प्रधान इंसान हर कोई अनादर बर्दास्त कर सकता हैं. हर विवशता से भीड़ सकता हैं. लेकिन तुम तो मानो मेरी भयानक अपराधी में गिनती करने लगी. और मुझ से दूर हो गई. तुम्हारा ऐसा व्यवहार मेरी समज में नहीं आता था..
तुम मुझ से नाराज थी. यह बात तो मैं समज गया था. लेकिन क्या वजह थी? यह कभी नहीं समज पाया था. वह क्या वजह थी? यह जानना मैं तो क्या हर किसी को जानना निहायत जरुरी होता हैं. लेकिन मैं चाहते हुए भी तुम्हे पूछ नहीं पाया था. तुम खुद बताओगी. मेरा यह विश्वास खोखला साबित हुआ था. इस बात को मैं समज नहीं पा रहा था.

तुमने तो अपने मस्टर में से ही नाम निकाल दिया था.

" स्नेहा! तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? "

" क्या तुम्हारे बोस ने तुम्हारी शिकायत के अनुसन्धान में मेरी कहानी लिखने पर पाबंदी लगा दी थी."

यह सवाल प्रतिपल मेरे भीतर को कुरेद रहा हैं..

तुम्हारी वज़ह से ही मेरी लेखन प्रवृति पर पाबंदी लग गईं थी. यह बात मैं अपनी बीवी को भी बता नहीं पाया था. वह यह सच नहीं झेल पायेगी. मुझे क्या क्या सुनायेगी. यह सोचकर मैंने अपनी जुबान पर ताला लगा दिया था..

तुम्हारे बोस ने निश्चित रूप से मेरी कोई शिकायत मैनेजमेंट से की थी जिस का यह नतीजा था!!

अन्यथा मेरी लिखाई का प्रकाशन बंद होने की कोई वजह नहीं थी.

वैसे कोई अंगत वजह से ऐसा कदम नहीं उठा सकता हैं. किसी की प्रतिभा को मिटाने की झूल्ल्त नहीं कर सकता..

सच्चाई क्या थी? यह जानने की कोशिश जारी थी..

आखिरकार मेरे एक दोस्त ने सच्चाई बयान की थी :

" विजय! राहुल बोस की छोटी बहन के साथ शुरू हो गया था. और सब के सामने अभद्र हरकते करता रहता हैं. तुम भी ज्यादातर राहुल के साथ इन्वॉल्व रहते हो जिस ने तुम्हारे बारे में स्नेहा को तुम्हारे चरित्र के बारे में संशय जगाया हैं. इस लिये वह तुम से दूर रहती आई हैं. "

" ओह! माय गोड़! " मेरे मुंह से निकल गया.

यही बात बताने के लिये ऊस के बोस ने मुझे कार में लिफ्ट देकर सच्चाई जाहिर करते हुए सजाग कर दिया

सच्चाई जानकर मेरे सर से पहाड़ जैसा बोज़ टल गया.

अनजाने में तुम्हारे बारे में भी न जाने क्या क्या सोच लिया. अगर थोड़ा सा भी इशारा किया होता तो? कितना मानसिक परिताप से बच गया होता.

मुझे आशा हैं. मेरा यह ख़त पढ़कर तुम विनय ( कमलाकर ) को लेकर मेरे घर आओगी. मेरा डैडी के रूप में स्वीकार करोंगी..बस मुझे उसी दिन का इंतजार हैं.

तुम्हारा अभागी ( सदभागी ) डैडी

विजय


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