दलित विरोधी मीडिया
जी, हाँ, सही सुना आपने आज कल का जो बिकाऊ गोदी मीडिया है वह आज भी दलित विरोधी सोच रखता हैं! इतना ही नहीं मीडिया में आज भी दलित समाज के पत्रकारों को कोई जगह नहीं दी जाती है! जहाँ भी जाओ हर क्षेत्र में आज भी बड़े-बड़े रहीस सवर्ण कुल के लोग आधिपत्य जमाये हुए है!
यह मानसिकता इस आधुनिक समाज की उन पुरातन रूढ़ियों के कारण ही है ! इतना ही नहीं यदि हम इतिहास की बात करें तो वहाँ भी दलित का कोई इतिहास नहीं है!
किंतु यहाँ मूल प्रश्न दलित विरोधी गोदी मीडिया पर है कि इस आधुनिक युग में वह भी भारत जैसे लोकतांत्रिक में इस प्रकार के भेदभाव बहुत ही निंदनीय है!
यदा बचपन में जब मैं छोटा था तो, मैं रेडियो एफ एम पर सुरीली आवाज में संगीत, सटीक खबरें सुनाई देती थी! उसके बाद टेलीविजन पर भी डी डी नेशनल, प्रसार भारती जैसे चैनलों की काफी मधुर व सटीक खबरें आती थी! यहाँ तक कि लोगों में सामाजिक एकता,भाईचारे का संदेश उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम दिया जाता था!
उन खबरों को रेडियो व टीवी पर पढ़ने वाले पत्रकार, मीडिया कर्मी, संपादक भी खबरों को शालीनतापूर्वक बहुत अच्छे से पेश करते थे!
लेकिन आजकल के इस आधुनिकता के प्रौद्योगिकी युग में मीडियाकर्मी खबरों को टीवी पर सनसनीखेज के रूप में इस प्रकार दिखाते है,कि एक आदमी के जिंदा होने से मरने तक इन झूठी खबरों से लोगों में काफी भ्रामकता व भयानक दुष्प्रचार किया जाता है!
इतना ही नहीं दलितों, आदिवासियों,व अल्पसंख्यकों को तो ये गोदी मीडिया वाले पत्रकार इस प्रकार पेश करते है जैसे कि दलित समाज, आदिवासी समाज व अल्पसंख्यक इस देश के अपराधी हो! आज कल कुछ नामी गोदी मीडिया वाले अपने स्वार्थ हित में चैनल की टीआरपी बढाने के लिए झूठी खबरें किसी एक पक्ष को अच्छे से पेश करते हुए टीवी पर चापलूसी करते हुए नजर आते हैं! मैं जब भी टीवी पर या यु ट्यूब पर खबर देखने बैठता हूँ, तो कोई भी टीवी एंकर/ पत्रकार की खबर कहीं नियमों से हटकर अलग ही तेज -तेज बेसुरी आवाज में किसी एक व्यक्ति विशेष की या सरकार की तारीफ करते हुए देखने को मिलती है|
जैसा कि संविधान में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया है! किंतु आजकल के ये टीवी चैनल लोकतंत्र का संवैधानिक दुरूपयोग करने लगे है
© Jitendra_kumar_sarkar
यह मानसिकता इस आधुनिक समाज की उन पुरातन रूढ़ियों के कारण ही है ! इतना ही नहीं यदि हम इतिहास की बात करें तो वहाँ भी दलित का कोई इतिहास नहीं है!
किंतु यहाँ मूल प्रश्न दलित विरोधी गोदी मीडिया पर है कि इस आधुनिक युग में वह भी भारत जैसे लोकतांत्रिक में इस प्रकार के भेदभाव बहुत ही निंदनीय है!
यदा बचपन में जब मैं छोटा था तो, मैं रेडियो एफ एम पर सुरीली आवाज में संगीत, सटीक खबरें सुनाई देती थी! उसके बाद टेलीविजन पर भी डी डी नेशनल, प्रसार भारती जैसे चैनलों की काफी मधुर व सटीक खबरें आती थी! यहाँ तक कि लोगों में सामाजिक एकता,भाईचारे का संदेश उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम दिया जाता था!
उन खबरों को रेडियो व टीवी पर पढ़ने वाले पत्रकार, मीडिया कर्मी, संपादक भी खबरों को शालीनतापूर्वक बहुत अच्छे से पेश करते थे!
लेकिन आजकल के इस आधुनिकता के प्रौद्योगिकी युग में मीडियाकर्मी खबरों को टीवी पर सनसनीखेज के रूप में इस प्रकार दिखाते है,कि एक आदमी के जिंदा होने से मरने तक इन झूठी खबरों से लोगों में काफी भ्रामकता व भयानक दुष्प्रचार किया जाता है!
इतना ही नहीं दलितों, आदिवासियों,व अल्पसंख्यकों को तो ये गोदी मीडिया वाले पत्रकार इस प्रकार पेश करते है जैसे कि दलित समाज, आदिवासी समाज व अल्पसंख्यक इस देश के अपराधी हो! आज कल कुछ नामी गोदी मीडिया वाले अपने स्वार्थ हित में चैनल की टीआरपी बढाने के लिए झूठी खबरें किसी एक पक्ष को अच्छे से पेश करते हुए टीवी पर चापलूसी करते हुए नजर आते हैं! मैं जब भी टीवी पर या यु ट्यूब पर खबर देखने बैठता हूँ, तो कोई भी टीवी एंकर/ पत्रकार की खबर कहीं नियमों से हटकर अलग ही तेज -तेज बेसुरी आवाज में किसी एक व्यक्ति विशेष की या सरकार की तारीफ करते हुए देखने को मिलती है|
जैसा कि संविधान में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया है! किंतु आजकल के ये टीवी चैनल लोकतंत्र का संवैधानिक दुरूपयोग करने लगे है
© Jitendra_kumar_sarkar
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