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श्रीमद्भागवद ओर विज्ञान
जब सागर स्वयं धरती पर हि है तो धरती को उसी पे सिथित सागर में कैसे डुबाया जा सकता है।

जब भी भगवान विष्णु के वराह अवतार कि बात होती है तो एक विशेष नास्तिक तपका उसका मज़ाक़ बनाता नज़र आता है व कुछ उसको मिथ्या या मनघडन्त कहानी बता के अठहास व उपहास करते नज़र आते है।
कुछ कुतर्क करते है की जब सागर स्वयं धरती पर हि है तो धरती को उसी पे सिथित सागर में कैसे डुबाया जा सकता है।
उनकी ये बात बिलकुल सही भी है, भला कैसे पृथ्वी को उसी पे सिथित सागर में डुबाया जा सकता है, यह संभव है हि नहीं।
लेकिन उनका ये कुतर्क स्वयं उनकी ख़ुद कि मानशिक विकास, मन्धबुद्दी, मूर्खता व अज्ञानता को दर्शाता है।
ऐसी बाते कर के वो सव्यम् को सत्यापित मूर्ख घोषित कर देते है।

पहली बात तो श्रीमद्भागवत पुराण में लिखा है कि हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को जलमग्न कर दिया था तो भगवान श्रीहरी विष्णु ने वराह अवतार करके पृथ्वी को जल से निकाला था। लेकिन इसका ye तात्प्रिय क़तई नहीं है कि वो सागर पृथ्वी पर हि था। ये इन मूर्खों के सव्यम के जड़ बुद्धि में पैदा हुआ कुतर्क है।
लेकिन फिर बात ये भी आती है कि वो सागर जिसमे पृथ्वी को जलमग्न किया गया था वो है कहाँ, क्यूँकि पृथ्वी के अलावा इतना बड़ा जलस्रोत है भी कहाँ।
अब क्यूकी यें हमारे शास्त्रों कि बात को तो मानेंगे नहीं और कहेंगे विज्ञान हि सर्वश्रेष्ठ है, तो आज हम आधुनिक विज्ञान द्वारा कि गई कुछ खोजो पे नज़र डालके पता लगाने का प्रयास करते है।

सबसे पहले हम बात करेंगे “क्वासर” कि।
जी हाँ NASA के विज्ञानिकों कि 2 टीमो ने ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए पानी के सबसे बड़े और सबसे दूर के जलाशय की खोज की है।
यह पानी धरती के महासागर से 140 ट्रिलियन गुना पानी के बराबर, यह एक विशाल खिला ब्लैक होल को घेरता है, जिसे क्वासर कहा जाता है, जो 12 अरब से अधिक प्रकाश वर्ष दूर है। इसका लिंक में साथ में लगा रहा हूँ - nasa.gov/specials/ocean…
और ये पहली बार नहीं है जब आधुनिक विज्ञान ने अंतरिक्ष के अंदर बड़े जल स्त्रोत को खोजा है। उसके लिए मैं एक और विज्ञानिक खोज को सबूत के तौर पर रखने जा रहा हूँ जिसका कहना है -

एक्सोप्लैनेट्स यानी हमारे सौर मंडल से बाहर के ग्रहों पर पानी मौजूद है। एक्सोप्लैनेट वर्ष 1992 में पाए गए थे। उनकी खोज के बाद से, वैज्ञानिक यह जानने के लिए उत्सुक रहे हैं कि क्या इन ग्रहों पर जीवन कायम रह सकता है। नासा के केपलर स्पेस टेलीस्कोप और ईएसए के गैया उपग्रह द्वारा हाल ही में किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि ये एक्सोप्लैनेट 50% पानी हैं।

और ऐसी ना जाने कितने हि सबूत आज आधुनिक विज्ञान ने खोजे है जो इस बात कि पुष्टि करते है की पृथ्वी के अलावा पृथ्वी से कई गुना बड़े जलाशय हमारे बृहाण्ड में मौजूद है।
अत: आधुनिक विज्ञान भी अब अपनी खोज को आगे बढ़ाने के लिए श्रीमद्भागवदगीता पुराण को माध्यम व सहारा मान के अपनी खोज को आगे बढ़ा रही है, आधुनिक विज्ञान भी अब मानने लगी है की श्रीमद्भागवद पुराण में इतने वर्ष पहले इन बातो का वर्णन होना मात्र कल्पना या कथा नहीं है व इन्ही श्लोकों को गूढ़ता से क्रैक करके हम ब्रह्मांड में मौजूद जलस्रोत का पता लगा सकते है।

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