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स्त्री.. पुरुष... एक इतिहास..
एक समय था, जब स्त्रियों को संगिनी के रूप में हासिल करना बड़ी प्रतिस्पर्धा का कार्य था। तब यह सहज एवोल्यूशनरी चाहना पुरुष के मन में आयी कि बल, पौरुष और पराक्रम से हासिल हुई स्त्री उसकी इज्जत करे, सिर्फ उसकी बन कर उसे परमेश्वर का दर्जा दे, उसकी भक्ति करे। इस व्यवस्था से स्त्री को भोजन/आश्रय उपलब्ध कराते पुरुष का अहं भी संतुष्ट, परिवार नामक संस्था भी संतुलित रही।
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अब धीरे-धीरे आधुनिक काल आया।...