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मोक्ष में बांधा संसारिक मोह-माया |
# WritcoStoryPrompt103
Tell us about an unforgettable experience that left you sadder but wiser.
कभी कभी इंसान अपनी जिन्दगी में लगातार दुःखों को छेलते हुए आगे बढ़ता रहता है। पर जीवन भर ना किसी का साथ ना कोई उसकी भावना को समझ पाता है। और कई बार तो हम यही सोचने लगते है 'कि हमने क्या पाया और क्या खोया । हमारा जीवन ही हमें व्यर्थ लगने लगता है। ना जाने किस किस दुखों का निर्वारण करे। पता ही नही चल पाता आखिर हमारे जीवन का मतलब क्या है । आखिर हमें यह मनुष्य रूपी शरीर क्यो मिला है ? हम आये कहाँ से? और हमें जाना कहाँ है।? कई सवाल हमारे जहन में घुमते रहते है? शायद सभी लोगों को लगता होगा।? जीवन भी एक समय चक्र में बंधा हुआ है। हम जनम लेते है। और बड़े होते है! पर जन्म से लेकर मृत्यु तक इस सफर के बीच कई क्रिया हम से जुड़ी है।
जैसे माँ की कोख में नौ महिने का हमारा सफर " और इस सफर को तय करते समय हम अपनी माँ को कितना कष्ट देते है? हमें जीवन देने के लिये हमारी माँ बहुत यातनाऐं सहन करती है " तब हमारा जनम होता है। जनम लेने के पश्चात हमारा पालन पोषण और हमारी शिक्षा . शादी गृहस्थी आदि का भार हमारे कंधे पर डाला जाता है । हम नये नये सपने देखने लगते है। " उन सपनो को पूरा करने के लिये हर प्रकार से विवश हो जाते है। और फिर संसारिक मोह माया के चक्कर में फँस कर जीवन का असली महत्व ही भूल जाते हैं। हमारे चेहरे पर माया का जाल पड़ जाता है। तो क्या हम यहां पर सिर्फ जनम ' मरण ' परण आदि क्रिया को संम्पन्न करने आये है? कुछ ज्ञात नही है। वैसे नासा के एक अध्ययन से पता चलता है । कि हमारी पृथ्वी और मानव जीवन से पहले भी यह ब्रह्मांड था ।' और पृथ्वी का बनाना नासा के अध्ययन से अनुमान लगाया जाता है । कि एक दिन का जीवन काल है। एक दिन में पृथ्वी बनी और पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तु प्राणी वनस्पति आदि । सोचने वाली बात यह है कि एक दिन की यह प्रतिक्रिया कई बार हुई होगी । कई बार पृथ्वी और मानवजीव समाप्त हुआ होगा। और बना होगा। फिर वही प्रश्न आखिर इस सभी रहस्य के पीछे कौन है ।और कौन यह सब कर रहा है? हमारा जनम लेना और समाप्त हो जाना हमारे वंश में नही है । शायद यही कोई शक्ति जरूर है । जिनके हाथों में हमारी डोर है। " खैर छोड़ो सदियों से हम विचार करते आये है " हमें इन प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए " फिर बार बार जन्म लेना और मरना आखिर क्यों "? चलो विज्ञान को छोड़कर एक आध्यमिक कहानी की ओर चलते है ।
एक समय की बात है। राजा भरत अपने जीवन के अन्तिम चरण में किसी वन में कुटिया बनाकर सन्यास अवस्था को पूर्ण करने लगे। कहते कि चार आश्रम होते है। जिनको जीवन के अनुसार चार भागों में बांटा गया है। पहला बाल प्रस्थ आश्रम दुसरा ग्रहस्थ आश्रम तीसरा वनप्रस्थ आश्रम और चौथा है सन्यास आश्रम । जनम से लेकर शिक्षा पूर्ण करने तक बाल प्रस्थ आश्रम माना जाता है। विवाह से लेकर वृद्ध अवस्था तक गृहस्थ आश्रम माना जाता है । अपनी सम्पूर्ण जिम्मेदारी को पूर्ण करके ईश्वर भक्ति में लीन होने के लिये व्यक्ति वन में रहता है। जहां वह अपनी सारी मोह माया को त्याग कर खुद को संसारिक बन्धन से मुक्त करने की कोशिश करता है। फिर सन्यास आश्रम जहाँ वह एक कुटिया में साधु की भांति जीवन को जीते हुऐ अपने प्राणो को त्याग देता है। इस प्रकार की जीवन शैली व्यक्ति के लिए बनाई गई थी। जब राजा भरत सन्यास आश्रम के कारण एक कुटिया में रहने लगे तब एक गर्ववती हिरण ने कुटिया के समीप एक शिशु को जनम देते समय अपने प्राणो को त्याग दिया था। और हिरणी का बच्चा जिन्दा भुख से बिलख रहा था ' । तब भरत जी को उस हिरणी के बच्चे पर दया आ गई । और वह उसे उठाकर अपनी कुटिया में ले आये। अब भरत जी का सारा समय प्रभु भक्ति से हटकर उस हिरणी के बच्चे के साथ बीतने लगा। भरत जी का उस हिरणी के बच्चे से मोह बढने लगा। " इस मोह के कारण भरत की मृत्यु के समय जो आसक्ति बाकी रह गई। उसी के कारण भरत जी को वापस इस संसार में जनम लेना पड़ा । कहते है कि अगर व्यक्ति की मृत्यु होती है। और कोई संसारिक इच्छा शेष रह जाती है ।तो भी पुनः इस संसार में आना पड़ता है। मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने के लिए मोह माया ' लोभ लालच आदि इच्छाओ को त्यागना पड़ता है। तभी मोक्ष प्राप्त होता है ।
© shakuntala sharma