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#ईमानदारी
सत्य प्रकाश सिन्हा जी बहुत ईमानदार एवं कर्मठी पुलिस अधिकारी थे मगर उनकी अतिशय ईमानदारी ही कई भ्रष्ट अफसरों एवं राजनेताओं को उनके खून का प्यासा बना दी थी। वे जिस शहर में भी गए..वहीं उनके दुश्मन हज़ार पैदा हो गए। कई बार उनपर जानलेवा हमले हुए..तो कई बार उनके कर्तव्यपथ पर रुकावटें पैदा हुईं..पर कहते हैं न..जाको राखे सैंया मार सके न कोय"..तो वे कभी अपनी ड्यूटी के प्रति फ़र्ज़ से न कभी डरे..न कभी डिगे। जब उच्चाधिकारी कुछ नही कर पाते तब स्थानांतरण पर स्थानांतरण ही उनका एकमात्र धेय्य बचता है।
" फिर स्थानांतरण ??" आश्चर्य से सत्य प्रकाश सिन्हा की पत्नी नीति ने कहा! पांच साल की शादी में ..नौ बार स्थानांतरण ??ओफ्फोह!! मैं तो थक चुकी हूं आये दिन के स्थानान्तरण और पैकिंग से। रुआंसी हो .. नीति अपने कमरे में चली गई।
' सच ही तो है..'सत्यप्रकाश जी ने सोचा..
बेईमानों पर शिकंजा कसो तो कई बेईमान अफसर, राजनेता आदि ईमानदारी के सफ़ेद चोले से बाहर आ जाते हैं।
'ऐसा नही है नीति! कि मैं तुम्हारी परेशानियों से अनभिज्ञ हूं। मैं जानता हूं ..मैं तुम्हें बहुत वक़्त नही दे पाता और न ही तुम इतनी कम अवधि में अपने आसपड़ोस से बहुत परिचित हो पाती हो..पर मैं क्या करूं नीति!!मुझसे अपराध छमा नही होते और भ्रस्टाचार मैं बर्दाश्त नही कर पाता हूं।मैं अपनी ड्यूटी के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित हूं और प्रधानमंत्री जी के इस वाक्य के साथ कि "हमें भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाना है" में अपना छोटा सा योगदान ही तो देता हूं।'..नीति को अपने अंक में भरते हुए उसके सर को प्यार से सहलाते हुए उन्होंने कहा!
'तो मैं अपनी तैयारी शुरू करूं?' मुस्कुराते हुए नीति नए जोश के साथ उठ खड़ी हुई । यही तो थी नीति की खासियत.. जिसकी वज़ह से सत्यप्रकाश जी अपने कर्तव्य पथ पर चट्टान की भांति अटल रहते थे। नीति ने हमेशा उनके इस गुण का सम्मान ही किया। पर क्या करे!!कभी-कभी वह भी विचलित हो जाती थी।
नए शहर का पहला दिन...
नया शहर.. नई स्फूर्ति के साथ चाय के दो प्याले लेकर नीति लॉन में बैठे अपने पति को एक प्याला पकड़ाते हुए और एक स्वयं लेकर बैठ गई ।
चाय की पहली घूंट के साथ ही नीति ने सत्यप्रकाश जी को मुस्कुराते हुए देखा...और हंसते हुए पूछा..." और...कब तक रहना है यहां?? और दोनों ठठाकर हंस पड़े।

मीना गोपाल त्रिपाठी