मेरी पहचान
कवि, लेखक, शायर ये सब खूबियां हर इंसान में होती है लेकिन किसी में कम और किसी में ज्यादा । हमारे आस पास हर जगह आपको कवि लेखक आदि मिल जाएंगे । उदहारण के लिये हमारे अखबार की खबरें, हमारे आस पास बजने वाले गीत, बियाह शादियों में बोली जाने वाली बोलियां इत्यादि किसी कवि या लेखक की ही रचना है । यहाँ तक कि धर्म पुस्तकों को लिखने वाले भी लेखक या कवि ही हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं की मदद से सारी दुनियां में उद्देश्य दिए और हम सब का मार्ग दर्शन किया । स्कूल कॉलेजो में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकें भी लेखकों द्वारा लिखी गयी हैं, सरल भाषा में कहें तो लेखक या कवि अगर ना होते तो इंसान की ज़िंदगी रंगहीन होती और उसे पढ़ने लिखने और सही गलत का ज्ञान नहीं होता । मेरी नज़र में सबसे बड़ा लिखने वाला वो भगवान है जिसने सारे संसार था उसके जीवों का जीवन लिख दिया, तो चलिए शुरू करते हैं खुदा के नाम से जो सारे संसार को लिखने वाला है । मेरी कहानी "एक मुलाकात खुद के संग"
जैसे कि आप सब जानते हैं मेरा नाम आशिम है । मैं बचपन से ही एक लेखक था, मेरा मेरे खिलौनों के लिए कवितायें लिखना आम बात थी । चुटकुले बनाना, डायरी लिखना, कवितायें और नज़्में लिखना ये सब मेरा बचपन से ही जारी था । मेरी नज़र में ये मेरे लिए गॉड गिफ्ट से भी बड़ा कुछ है । जिंदगी करवट बदलती रही, उतार चढ़ाव आते रहे दिल और मौसम अनुसार मैं लिखा करता था । स्कूल के दिन थे मोबाइल का ज़माना तब नहीं था । अगर मोबाइल कुछ समय के लिए मिलता भी था तो हम ज्यादातर साप वाली गेम खेलना ही पसन्द करते थे । जूं जूं वक़्त गुज़रता रहा आरज़ू हुई कि क्यों ना जो भी लिखा है उसे इंटरनेट पर डाला जाए । और ये ख्वाब yourquote ऐप्प ने पूरा किया । कुछ छः महीने मैंने वहीं पर लिखा । बहुत सारे अच्छे लोग मिले जिन्होंने मुझे पढ़ा और मुझे और लिखने के लिए प्रेरित किया ।
शायरी की दुनियां में अब मैं पूरी तरह घुस चुका था । मैं देखा करता था कि जो बड़े बड़े लिखने वाले है उन्होंने खुद का नाम कुछ इस तरह लिखा होता था कि पढ़ने वाला समझ जाये कि वो लेखक हैं । उदहारण के लिए हमारे अज़ीम दोस्त कवि अज्ञात, मुसाफिर बरेलवी, दिल्ली वाली शायर आदि । मेरा भी बहुत मन हुआ कि ऐसा एक नाम मेरा भी हो, मैंने दूसरे लेखकों से कहा कि मुझे कोई नाम दें । उनके दिए किसी भी नाम से मैं सन्तुष्ट न हुआ । बदलते वक़्त के साथ मेरी कविताओं तथा नज़्मों में एक नाम शामिल होने लगा "राहिब" और अजीब बात तो ये थी कि ये नाम मैंने कभी नहीं सोचा था । ये नाम कहाँ से आया था मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था ।
बात 20 जुलाई 2018 की है । मैं 19 जुलाई को दिल्ली गया था किसी काम से और हैरत की बात तो ये है कि मैं दो दिन से नहीं सोया था । आज 20 जुलाई को मुझे वापिस लुधियाना आना था । शाम 7 बजे के करीब मैं बस में...