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मनुष्य होने के लिए अनिवार्य गुण
व्यक्ति की अपने द्वारा रचे ईश्वर में न्यूनतम आस्था होनी चाहिए । आस्था जड़ नहीं होगी तो भय कम होगा, भय कम होगा पाखंड और अंधविश्वास भी कम से कम होगा। अंधविश्वास कम होगा तो उसके नाम पर किये जाने वाले कत्ल और रक्तपात भी निश्चित तौर पर घटेंगे ही।

आदमी का जन्म इसलिए हुआ है कि वह बेहतर की ओर बढ़े । और बेहतरी का रास्ता अंधता, हिंसा और रक्तपात से होकर कभी नहीं जाता है। फिर वह हिंसा मनुष्यों के साथ होती हो या मनुष्येतर प्राणियों के। और जिनका जाता है वे मनुष्य नहीं, मनुष्य और मनुष्यता के नाम पर धब्बा हैं !

आस्था ही रखनी है तो अगाध रखिए मगर किसी अदृश्य ईश्वर के प्रति नहीं , प्रकृति के प्रति । क्योंकि वही ईश्वर का सबसे सच्चा रूप है। जो महसूस भी होता है दिखलाई भी पड़ता है। जिसके हर क्षण हम सब कर्जदार है हवा के लिए, पानी के लिए, धूप के लिए अन्य तमाम चीजों के लिए।

और इस बुद्धि, इस ज्ञान प्राप्ति के लिए भी, कि आदमी चाहें तो कम से कम हिंसा करके भी जीवित रह सकता है। वही उसका कर्तव्य भी है एक मनुष्य होने के नाते अगर उसे समझ आये।

बेहतर ही करना चाहते हैं तो पेड़-पौधे लगाएँ, पानी बचाएं, नदियों और पहाड़ो को साफ न करें तो गंदा भी न करें। वनों की रक्षा करें। लगातार नष्ट हो रहे खेतों खलिहानों को बचाएँ। मनुष्यों से लेकर पशुओं तक और पशुओं से लेकर पक्षियों तक और उनसे लेकर पैर के नीचे आने वाली चींटी तक किसी के साथ भी जानबूझकर हिंसा न करें। कमजोरों, बेजुबानों, मनुष्यों से लेकर पशुओं तक के प्रति भी दयालु और संवेदनशील बनें। किसी भी तरह के फर्जी गर्व की भावना से कम से कम भरें।

मनुष्य का जन्म भक्षण के लिए नहीं रक्षण के लिए हुआ है अगर कोई वास्तव में मनुष्य है तो वह जैसे-जैसे सचेत होता जाता है उसे यह सब अपने आप समझ आता जाता है। उसे किसी को सिखाने की या किसी किताब में पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती । उसकी सबसे अधिक आस्था मनुष्यता में होती है और मनुष्य होने के लिए यह अनिवार्य गुण हैं !

- वियोगिनी ठाकुर