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पतिपुजिका की कथा
#पतिपूजिका_की_कथा
#धम्मपद_गाथा_48

स्थानः #जेतवन , #श्रावस्ती

#श्रावस्ती में एक महिला रहती थी। सोलह वर्ष की आयु में ही उसका विवाह कर दिया गया। उसे चार पुत्र हुए। वह विहार जाकर वहाँ सफाई आदि और भिक्षुओं की सेवा करती थी। उसे पूर्व जन्म की बातें जानने की सिद्धि प्राप्त थी। अपने पूर्व जन्म में वह #तावर्तिस देव लोक में मालभारी की पत्नी थी। धरती पर जन्म लेने पर भी उसके मन में सदा यह लालसा बनी रही कि उसका पुनर्जन्म तावतिंस दिव्य लोक में हो और वह एक बार फिर मालभारी की पत्नी बने। वह इसी भावना से भिक्षुओं की सेवा करती थी। चूंकि वह अपने पति को बहुत चाहती थी , मानों उसकी पूजा ही किया करती थी , अतः लोगों ने उसका नाम 'पतिपूजिका' रख दिया था।

एक दिन वह किसी बीमारी के कारण चल बसी। मृत्यु के बाद तावर्तिस दिव्य लोक में अपने पति के पास जा पहुँची। उस समय उसकी दूसरी सहेलियाँ उसके पति की सेवा कर रही थीं।

मालभारी ने पूछा- आज सुबह से कहाँ थीं ? अभी - अभी देख रहा हूँ।

महिला- स्वामी ! मेरी मृत्यु हो गई थी।

मालभारी- सच! कहाँ जन्म हुआ था?

महिला- श्रावस्ती के एक उच्च कुल में।

मालभारी- वहाँ कितना समय बिताया?

महिला- दस मास तो माँ की कोख में और उसके बाद सोलह वर्ष की आयु में विवाह हुआ, चार पुत्रों की माता बनी और धरती पर शरीर त्यागने के बाद एक बार पुनः तावतिंस दिव्य लोक में जन्म हुआ है और आपके सामने उपस्थित हूँ।

मालभारी- मनुष्यों की उम्र सामान्यत: कितनी होती है?

महिला- अधिक से अधिक सौ वर्ष।

मालभारी- बस इतनी कम उम्र होती है?

महिला- जी, हाँ श्रीमान् ।

मालभारी- इतनी कम उम्र पाकर भी लोग क्या प्रमाद में ही अपना समय बिता देते हैं या धर्म , पुण्य आदि सत्कर्म भी करते हैं?

महिला- प्रश्न मत कीजिए , स्वामी ! वहाँ तो मनुष्य अपने को अजर-अमर मानते हैं और उसी के अनुकूल प्रमत्त आचरण करते हैं ।

"यह सुनकर मालभारी को बहुत दुःख हुआ। उसने सोचा, "आश्चर्य है, घोर आश्चर्य है ! सिर्फ सौ वर्ष की छोटी आयु प्राप्त करने पर भी धरती के लोग प्रमत्त होकर सोते हुए अपना सारा समय नष्ट कर देते हैं। पता नहीं धरती के ये लोग अपने दुःखों से कब मुक्त होंगे?

मनुष्यों की यह आयु त्रायस्त्रिंश दिव्य लोक के सिर्फ एक दिन के बराबर है। इतनी कम उम्र प्राप्त कर प्रमाद युक्त जीवन बिताना सचमुच ही एक भीषण प्रमाद की बात है।

उधर भिक्षुओं ने देखा कि विहार साफ सुथरा नहीं है। पता किया तो पता चला पतिपूजिका का देहावसान हो गया है। वे शास्ता के पास गए और पूरी बात बताई।

#शाक्य_मुनि ने उन्हें समझाया, "हाँ भिक्षुओं ! मनुष्य जीवन की अवधि बहुत ही छोटी है। इसी कारण सांसारिक विषयों में लिप्त इंसान को जब मृत्यु पकड़कर ले जाती है तो वह रोता,कलपता रहता है।

यह कहकर उन्होंने यह गाथा कही-

पुष्फानि हेव पचिनन्तं,
व्यासत्तमनसं नरं।
अतित्तं येव कामेसु,
अन्तको कुरुते वसं ।।48 ।।

काम भोग रूपी पुष्प चुनने वाले , आसक्ति में डूबे मनुष्य को , जो अभी तक कामनाओं से तृप्त नहीं हुआ है , यमराज अपने वश में कर लेता है ।