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पत्थर और आईना
एक बार की बात है। एक पत्थर और एक आईने में बहुत गहरी दोस्ती थी। एक दिन कुछ पहाड़ों ने पत्थर का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि "तुमने इतने मज़बूत होकर भी एक कांच से दोस्ती कर ली? बहुत कमज़ोर हो। आईने में सब ख़ुद को देखते हैं, मुस्कुराते हैं। तुम अगर सामने आ जाओ, तो लोग तुमसे ठोकरें खाते हैं, तुम्हें नज़रंदाज़ करके, गुस्सा करके चले जाते हैं।"
यह सुनकर पत्थर सोच में पड़ गया। उसे भी उनकी बातों मे सच्चाई दिखी। वह आईने के बहुत करीब(क्लोज़) था। वह आईने के पास गया।

आईने ने पूछा , "कहो , कैसे हो मित्र?"

आईने से "मित्र" शब्द सुनते ही पत्थर को पहाड़ों की बातें याद आईं और उसने कहा , "तुम मेरे आगे टिक नहीं पाओगे। कांची आईने!"

और भी बहुत कुछ बुरा-भला कहकर गुस्से में आईने से टकरा गया।

आईना टूटकर बिखर गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह हैरान-सा उसे ही देख रहा था।

अचानक उसने गौर किया कि पत्थर ज़मीन पर पड़ा दर्द से कराह रहा है। उसने पूछा , "क्या हुआ तुम्हें?"

पत्थर ने दर्द से कराहते हुए कहा , "तुमसे ही मुझे ये दर्द मिला है।"

आईने को कुछ समझ नहीं आया। अचानक कुछ याद आते ही उसने कहा , "पत्थर भाई, तुम चले जाओ यहां से! कोई आएगा तो उसका पैर मुझपर लग जाएगा और अगर वो तुम्हारी तरफ़ देखेगा तो और भड़क जाएगा। इससे अच्छा है कि तुम चले जाओ। मेरा क्या है? मैं तो कांची हूं। मुझे तो फेंक दिया जाएगा। तुम फूलों के पास जाओ। तुम्हें बाहर बगीचे में अच्छा लगेगा।"

यह सुनकर पत्थर को अपने किए पर पछतावा हुआ और उसने आईने से माफ़ी मांगी।

आईने ने मुस्कुराकर कहा , "तुम्हें माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है। मैं आईना हूं। दूसरों को उनकी सच्चाई दिखाता हूं, ये मेरा पेशा है। तुम लोगों को मज़बूत बनाते हो, ये तुम्हारी खूबी है। मैं तो लोगों को उनकी सच्चाई दिखाकर उन्हें उदास कर देता हूं लेकिन तुम उन्हें हालातों से लड़ना सिखाते हो। लोग मुझे देखकर मुस्कुराते तो हैं लेकिन अंदर-ही-अंदर वो उतने ही उदास भी होते हैं। तुम्हें देख कर लोग गुस्सा करना सीखते हैं, अपने हक़ के लिए लड़ना सीखते हैं। तुम उनके प्रेरक(मोटिवेटर) हो। मुझे तुम पर गर्व है।"

तभी कोई आया और ज़मीन पर बिखरे आईने को समेटकर कूड़ेदान में फेंक दिया और पत्थर को प्यार से चूमकर अपने पत्थरों के कलेक्शन में सजा दिया।




© Srishty Bansal