...

46 views

ताड़ - तुडया भंवरा
मैं गया तो था टहलने पर मेरी नजरें उसी को ढुंढ रहीं थीं... आखिर है कहां ?.... कई चक्कर लगा लिए पर निराशा ही हाथ लगी... कुछ हताश होकर मैं बेंच पर बैठकर पार्क के वृक्षों को निहारने लगा...पर ध्यान अब भी उस पर ही लगा रहा।

ओह! वह रहा... जैसे हवा में गेंद उछलती हुई आती है वैसे ही वह जैसे हवा में तैर रहा था... गुरुत्वाकर्षण का नियम शायद उसपर लागू नही होता होगा.. तभी तो वह इस प्रकार चलता है... चलते-चलते किस तरफ़ मुड़ जाए कहा नहीं जा सकता....
उसके इसी चाल ने मेरा ध्यान उसकी ओर आकृष्ट किया..पुरे पार्क में इसी तरह घुमता हुआ एक दिन दिखाई दिया...हाथ में एक छोटा सा बल्ला लिए...
मुझे अपने बचपन की याद आ गई..जब हम लट्टू खेला करते थे और कोई - कोई लट्टू की कील ( धुरी) अगर कुछ फैली हुई हो तो लट्टू , सीधे सीधे एक जगह ही न घुमकर, इधर - उधर मंडराने लगता... और मैंने मन ही मन उसका नाम रख दिया " ताड -तुडया भंवरा" (इधर उधर घुमने वाला लट्टू )।

क्रमशः
© aum 'sai'