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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 22 )
सावित्री :- गुस्से में,,, मानवी बस बहुत हुआ,, यह क्या तरीका है, बड़ों से बात करने का और तुम्हे इन सब बातों के बीच पड़ने की कोई जरूरत नही है।

मानवी :- लेकिन माँ में,,,,

मानवी इससे आगे कुछ बोलती सावित्री जी,, गुस्से में मानवी से बोलती है।

सावित्री जी :- गुस्से में,,, बस बहुत हुआ मानवी,,, इसके बाद अब तुमने कुछ भी कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा और चुपचाप अपने कमरे में जाओ।

मानवी बिना कुछ बोले ही गुस्से में वहाँ से चली जाती है। वही कुसुम ( गीतिका की माँ ) गीतिका को वहाँ से खीचतें हुए ले जाती है।

अपनी माँ का इस तरह का व्यवहार देखकर गीतिका को रोना आ जाता है और वह रोते हुए अपनी माँ से बोलती है।

गीतिका :- रोते हुए,,,,माँ मेरा हाथ छोड़ो मुझे कही नही जाना मुझे पढ़ाई करनी है।  मुझे सब पता है आप मेरा बाल विवाह कर रही है। मेरा हाथ छोड़ो ना माँ,,,
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