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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 22 )
सावित्री :- गुस्से में,,, मानवी बस बहुत हुआ,, यह क्या तरीका है, बड़ों से बात करने का और तुम्हे इन सब बातों के बीच पड़ने की कोई जरूरत नही है।

मानवी :- लेकिन माँ में,,,,

मानवी इससे आगे कुछ बोलती सावित्री जी,, गुस्से में मानवी से बोलती है।

सावित्री जी :- गुस्से में,,, बस बहुत हुआ मानवी,,, इसके बाद अब तुमने कुछ भी कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा और चुपचाप अपने कमरे में जाओ।

मानवी बिना कुछ बोले ही गुस्से में वहाँ से चली जाती है। वही कुसुम ( गीतिका की माँ ) गीतिका को वहाँ से खीचतें हुए ले जाती है।

अपनी माँ का इस तरह का व्यवहार देखकर गीतिका को रोना आ जाता है और वह रोते हुए अपनी माँ से बोलती है।

गीतिका :- रोते हुए,,,,माँ मेरा हाथ छोड़ो मुझे कही नही जाना मुझे पढ़ाई करनी है।  मुझे सब पता है आप मेरा बाल विवाह कर रही है। मेरा हाथ छोड़ो ना माँ,,,

गीतिका को इस तरह रोता देख सावित्री जी के आँखों से आँसू छलक पड़ते है। लेकिन वह चाहा कर भी कुछ नही कर सकती थी और बिना कुछ बोले वह मानवी के कमरे में चली जाती हैं।

वही मानवी अपने कमरे में बेड पर बैठकर रो रही होती है की तभी सावित्री जी मानवी के कमरे में आ जाती है और वही बेड पर बैठते हुए मानवी से बोलती हैं।

सावित्री जी :- कठोर आवाज में,,, मानवी हमने कितनी बार तुमसे कहा है की बड़ो से तमीज से बात करा करो और यह क्या तरीका है, बड़ों से बात करने का हमने तुम्हे यह तो नही सिखाया है।

मानवी :- रोते हुए,,,, लेकिन माँ आज चाची ने जो कहा और जो चाची करने जा रही है क्या वह सब सही है। गीतिका अभी कितनी छोटी है।

अभी तो उसने ठीक से बचपन जीना शरू भी नही किया और चाची उसकी आजादी छिनना चाहती है। क्या,,चाची यह सब सही कर रही है ?

मानवी का गीतिका के लिए प्यार और कुसुम ( गीतिका की माँ ) के लिए गुस्सा उसकी आवाज में साफ-साफ झलक रहा था।

वही सावित्री जी को भी कहीं ना कहीं कुसुम का गीतिका के लिए यह व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था। क्योंकि वह भी बाल विवाह के खिलाफ थी।

लेकिन उन्हे यह भी पता था की कुसुम के आगे कुछ बोलना मतलब अपनी ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना और यह बात सावित्री जी को बहुत अच्छे से पता थी।

मानवी और सावित्री जी बात कर ही रही होती है की मानवी को दरवाजे के पास कोई खड़ा हुआ नजर आता है। मानवी जैसे ही उस शक्स को देखती है तो अपने आँसू पूछते हुए बोलती है ।

मानवी :- आँसू साफ करते हुए,,,, निहाल भाई आप कब आए ?

दरवाजे पर खड़ा शक्स कोई और नही बल्कि मानवी का बड़ा भाई निहाल है। जिसकी उम्र लगभग पच्चीस साल के आस-पास है और वह काम के चक्कर में ज्यादतर घर से बाहर रहता है।

सावित्री जी जैसे ही मानवी के मुँह से निहाल नाम सुनती है तो वह पीछे पलटकर निहाल से कुछ बोलने ही वाली होती है की निहाल मानवी से पूछता है।

निहाल :- मानवी को देखते हुए,,,,क्या हुआ मानवी तू रो क्यों रही है ?

मानवी :- नकली मुस्कुराहट के साथ,,,,नही तो भाई मैं कहा रो रही शायद आपको कोई गलतफहमी हुई होगी।

निहाल :- मानवी के पास बैठते हुए,,,,अच्छा अगर ऐसी बात है तो तेरी आँखों में आँसू क्यों नज़र आ रहे है।

मानवी :- आँखों को साफ करते हुए,,, अच्छा वो शायद आँखों में कंकड़ चला गया था मैं माँ को दिखाने ही वाली थी की आप आ गए।

निहाल :- हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ,,, ओह,,, अच्छा अब समझा में की तू क्यों रो रही है, अपनी विदाई पर रोने की तैयारी कर रही है ना तू,,,मेरी प्यारी बहन।

मानवी :- चिढ़ते हुए,,,क्या भाई आप भी ना आपके पास कुछ और बात नही होती बोलने के लिए।

सावित्री जी :- बस,,,,,,

To Be Continue Part - 23
© Himanshu Singh