#चोरी #एग्जाम स्तफझ
अबकी बार परीक्षा का मौसम जैसे बदल गया था । सब कुछ.. यहाँ तक की परीक्षार्थी पेरेंट्स परीक्षक अधिकारी वर्ग... लगभग सभी. ।
लग रहा था कि कोई भर्ती परीक्षा चल रही हे और नोकरीवांच्छुं बहुत ही दत्त चित्त होकर पुरी ताकत लगाकर एग्जाम दे रहे थे।
सालोंसाल के लो सुहावने दृश्य कि लोग दिवारों पर चढ़कर बच्चों तक कापियां पहुंचाने का श्रम करते या फिर पुलिस से भीड़ कर मार खाकर भी डंडे लेकर भाग जाते.! बेचारे पुलिस वाले मजबूर होकर सरकारी बोझ बने डण्डे वापस लेने के लिए गिड़गिड़ाते !! वाह क्या सुहावने दृश्य थे.!!?
लगता है मारे कोरोना के बच्चे कुछ ज्यादा ही समजदार बन गये हैं.!! मां पापा की उम्मीदों को सच्चा ओर अच्छा साबित करने में लगे हैं.!! शायद शिक्षा नीति का प्रतिफल था या फिर कोरोना से उत्पन्न मजबूरी.!?
एक दिन था सरकार बच्चों तो क्या शिक्षकों को भी स्कूलों में मोबाईल के प्रयोग पर फटकार लगाती थी वहीं सरकार अब ओफलाईन से ओन लाईन पर कुछ ज्यादा ही जोर डाल रही है.!!
लगता है युगिन संदर्भ में बच्चे कुछ ज्यादा ही जल्दी मेच्योर हो रहे हैं.!!
दूसरी ओर बच्चे भारी भरकम फीस भरकर बेरोजगार के खप्पर में भूने जा रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों और कालिजों को चलते रहने और संचालकों के रूपये एंठने का जरिया जारी रहना चाहिए.!! जिसके ज्यादातर मालिक या तो राज नेता होते हैं या मित्र उद्योगपति.!
ओर एक बात भी है. कि नौकरीपेशा के लिए ज्यादातर लोगों का हौसला भी टूटता जा रहा है । क्योंकि बार बारनौकरीलक्षी परीक्षा के पेपर सार्वजनिक होते जा रहे और बेरोजगारी खतरनाक बढती जा रही है ।।
पैसे केन्द्रित राजनीति हो या शिक्षा, पर्यावरण हो या आरोग्य..! . सभी जगह लोग शोर्टकर्ट पकड रहे हैं !
बेशुमार भ्रष्टाचार बेकाबू बनता जा रहा है और विकराव राक्षसीरूप धारण करता जा रहा है।
तंत्र है कि बच्चों को चोर साबित करने पर तुला है.!!!
आदर्श की बातें सिर्फ फलसफा बन कर रह जाती है और सिद्धांत के रूप में सतही बनता जा रहा है !
© Bharat Tadvi
लग रहा था कि कोई भर्ती परीक्षा चल रही हे और नोकरीवांच्छुं बहुत ही दत्त चित्त होकर पुरी ताकत लगाकर एग्जाम दे रहे थे।
सालोंसाल के लो सुहावने दृश्य कि लोग दिवारों पर चढ़कर बच्चों तक कापियां पहुंचाने का श्रम करते या फिर पुलिस से भीड़ कर मार खाकर भी डंडे लेकर भाग जाते.! बेचारे पुलिस वाले मजबूर होकर सरकारी बोझ बने डण्डे वापस लेने के लिए गिड़गिड़ाते !! वाह क्या सुहावने दृश्य थे.!!?
लगता है मारे कोरोना के बच्चे कुछ ज्यादा ही समजदार बन गये हैं.!! मां पापा की उम्मीदों को सच्चा ओर अच्छा साबित करने में लगे हैं.!! शायद शिक्षा नीति का प्रतिफल था या फिर कोरोना से उत्पन्न मजबूरी.!?
एक दिन था सरकार बच्चों तो क्या शिक्षकों को भी स्कूलों में मोबाईल के प्रयोग पर फटकार लगाती थी वहीं सरकार अब ओफलाईन से ओन लाईन पर कुछ ज्यादा ही जोर डाल रही है.!!
लगता है युगिन संदर्भ में बच्चे कुछ ज्यादा ही जल्दी मेच्योर हो रहे हैं.!!
दूसरी ओर बच्चे भारी भरकम फीस भरकर बेरोजगार के खप्पर में भूने जा रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों और कालिजों को चलते रहने और संचालकों के रूपये एंठने का जरिया जारी रहना चाहिए.!! जिसके ज्यादातर मालिक या तो राज नेता होते हैं या मित्र उद्योगपति.!
ओर एक बात भी है. कि नौकरीपेशा के लिए ज्यादातर लोगों का हौसला भी टूटता जा रहा है । क्योंकि बार बारनौकरीलक्षी परीक्षा के पेपर सार्वजनिक होते जा रहे और बेरोजगारी खतरनाक बढती जा रही है ।।
पैसे केन्द्रित राजनीति हो या शिक्षा, पर्यावरण हो या आरोग्य..! . सभी जगह लोग शोर्टकर्ट पकड रहे हैं !
बेशुमार भ्रष्टाचार बेकाबू बनता जा रहा है और विकराव राक्षसीरूप धारण करता जा रहा है।
तंत्र है कि बच्चों को चोर साबित करने पर तुला है.!!!
आदर्श की बातें सिर्फ फलसफा बन कर रह जाती है और सिद्धांत के रूप में सतही बनता जा रहा है !
© Bharat Tadvi