पहली मुलाक़ात भाग_1
तुम इस काम को जल्दी -जल्दी पूरा क्यों नहीं कर सकते हो। अमित तुम्हारी यही आदत मुझे सबसे अधिक खराब लगती है। चाचाजी आप क्यों परेशान हो रहे है। मैं अभी हलवाई को सारा सामान पहुंचा कर आ रहा हूं, निश्चित रहिए आप। सारा की शादी में सभी अपने अपने काम में लगे हुए थे ठीक वैसे ही जैसे अमित लगा हुआ था। सारा अमित की चचेरी बहन है जिसकी आज शादी है बारात आने में अभी देर है इसलिए सभी लोग काम को जल्दी -जल्दी निपटाने में लगे हुए है। अरे ये मिठाइयां अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई, राकेश फूफा जी की तेज आवाज कानों में गूंज रही थी।जी भाई साहब बस समझो तैयार हो ही गई।आप नाहक ही परेशान हो रहे हैं। हलवाई हंसते हुए कहता है। हां मालूम है हमारे आगरा में होते तो काम कैसे होता है हम तुमको सिखलाते। तभी बन्नो बुआ चिल्लाई, अरे मेरा छोटू कहां हैं मिल नहीं रहा है। किसी ने देखा हो तो ऊपर वाले कमरे में भेज देना। सभी अपनी अपनी भागमभाग में लगे हुए थे। अमित, अमित सुरेन्द्र ने उसे पुकारा। जी पापा जी इधर आओ। हां बताइए, तुम अभी तुरंत बस स्टैंड पहुंचो और भोपाल वाले तुम्हारे अंकल राशिद भाई आ गये है उन्हें ले आना। ठीक है, और अमित बस स्टैंड को ओर चल देता है। वहां पहुंचते ही राशिद अंकल से मिलकर उनके पैर छूकर हालचाल लेता । वहीं पर पहली बार उसकी मुलाकात राबिया से होती है जो उसके राशिद अंकल की बेटी है अमित राबिया को पहली नज़र में ही अपना दिल दे बैठा है। शायद राबिया भी । खैर वह सभी लोगों को घर पहुंचाकर अपने काम में व्यस्त हो जाता है रात को बारात आती है और धूमधाम से शादी होती है लेकिन "अमित" जो कि लड़की का भाई भी है काम में इतना व्यस्त होता है कि उसे खाने पीने का भी ख्याल नहीं रहता है लेकिन वह राबिया को बार बार जरुर देखता रहता है। लेकिन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती है। रात को जब दावत समाप्त हो जाती है तो अमित भी निढाल होकर एक कोने में कुर्सी पर बैठ जाता है लेकिन वह भूल गया था कि राबिया भी छुपते छुपाते उसे ही देख रही थी। वह अचानक से अमित के सामने एक थाली लिए खड़ी हो जाती है। अमित तुम भी कुछ खा लो। मैं देख रही हूं कि तुमने अभी तक कुछ भी नहीं खाया है। प्लीज़! राबिया के आग्रह करने पर वह थाली से खाना शुरू करता है। फिर धीमें धीमें बातचीत का सिलसिला शुरू होता है। और बातचीत करते करते सुबह हो जाती है लेकिन दोनों में से कोई भी एक दूसरे से अपने दिल की बात नहीं कह पाता है। और बिना प्यार का इजहार किए बातें खत्म हो जाती है। लेकिन मुहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी है। जब राबिया वापस भोपाल को जा रही होती है तो अमित भी बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए आता है।उसे ऐसा लगता है जैसे उसका शरीर यहीं पर है और उसकी जान जा रही है।बस में बैठने के बाद जब तक बस अमित की आंखों से ओझल नहीं हो जाती तब तक राबिया उसे हाथों से बाय बाय करती रहती है जैसे कि कह रही हो मैं वापस जरुर आऊंगी। मेरा इंतजार करना। और पहली मुलाक़ात आंखों से उतरकर दिल तक तो पहुंच जाती है लेकिन ओंठो तक आते आते रह जाती है।
© Yogendra Singh
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