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हमारा वृक्ष
सत्य है,जब कोई व्यक्ति किसी वृक्ष को ठीक से निरोपित नहीं करें ,ठीक ढंग से न सींचे तो उस वृक्ष का ढ़हना तय है।
हमारे वृक्ष को सींचने वाले व्यक्ति ने भी हमारे घर पर ठीक ऐसे ही चार वृक्ष लगाए । मगर जिसने उन वृक्षों को निरोपित किया था । उसने चार वृक्षों में से किसी में ज्यादा पानी दिया तो किसी में कम । इसलिए उसका एक वृक्ष टेढ़ा हो गया।
और जो पेड़ उसने लगाया था अब वो हमारा है। और हम उस वृक्ष की तीन छोटी छोटी टहनियां है।
हमारे इस वृक्ष की बात करूं तो यह वृक्ष लगाने वाले ने ठीक से नहीं लगाया है। और इसमें उसकी दो मुख्य कमियां रही है - पहली कमी , उसकी बेवकुफी ।
दूसरी कमी ये रही कि अपने वृक्षों को सींचने हेतु दूसरों से पानी का कर्जा कर लिया।
अब हमारे वृक्ष में काफी खोट निकलने लगी। क्योंकि अब ये धरातल से ही टेढ़ा हो गया है। इस वृक्ष को कोई सीधा करने वाला नहीं मिला ।

इस वृक्ष की खासियत यह है कि ये वृक्ष नीतिगत नहीं खड़ा हुआ है। और आधे ढ़लान पर होने से जब हर कोई इसके नीचे आता है तो यही सोच कर निकल जाता है कि - इस वृक्ष का गिरना तय है।
फिलहाल इस वृक्ष में फल तो आ रहे है , मगर वे इसकी टहनियों के काम नहीं आ रहे। क्योंकि फल खाने वाले लोग फलों को झड़ाकर तोड़ ले जाते है।
और इतना ही नहीं यह वृक्ष एक बार तो बड़े हादसे में ढ़हता हुआ भी बाल बाल बचा है अन्यथा इस वृक्ष का जड़ से गिरना तय था। यह एक ऐसा वृक्ष है जो नियतमान सही स्थिति में ठीक से नहीं खड़ा है । अपितु डगमगा रहा है।
वैसे इस वृक्ष के पास बहुत कम लोग बैठते है । क्योंकि यह वृक्ष टेढ़ा और खुरदरा सा प्रतीत होता है । वैसे यह वृक्ष भी अब जड़ से जर होने चला है । और इसका तना व टहनियां भी सुखे जा रही है।
अतः इसको देखकर इसके बचाव में अब तो इसकी टहनियां भी त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगी है ।


© Jitendra_kumar_sarkar