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एक सभ्यता को धूमिल करने का षड्यंत्र
जहां पुरुषो का पहचान उनके मां के नाम से होता था। गंगा पुत्र भीष्म, कौशल्या नंदन राम
सौमित्र, देवकी नंदन श्री कृष्ण। ऐसे धर्म ऐसी सभ्यता को पुरुषप्रधान बोलना और मनु स्मृति का संदर्भ देना ठीक वैसा ही है जैसे किसी बच्चे कि तोतली भाषा जो पूरा नहीं हैं। पुरुषों में शारीरिक बल के आधार पर अगर काम बाटा गया हो तो इसका ये मतलब नहीं होता की महिलाएं अपमान या अवहेलना कि पात्र है।
ये तो एक षड्यंत्र के आधार पर मिलाया गया है समाज में
सती प्रथा - कुन्ती एक विधवा थी कह़ा सती हुई या महाभारत में या कोई भी पौराणिक कहानी में अंग्रेजो से पहले कहा वर्णन है? या रामायण में दशरथ के देहावसान के बाद कहा कोई सती का वर्णन है?
जो अपने हि विराशत को नहीं समझते या विश्वास नहीं करते ऐसे लोगों को संदेह में डालना या गुमराह कर देना आसान होता है।
सवाल तो पूछो । क्यों ऐसे लांछन लगाया गया