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# मायका
शैली की सुबह रोज 10:00 से 11:00 के बीच हुआ करती थी मां रोज उसे डांटा करती थी । 'कल को ससुराल जाएगी तो कैसे उठेगी ...'मगर उस पर जरा भी असर नहीं होता था। मां कभी हार कर तो कभी गुस्से से छोड़ दिया करती। 'ससुराल जाना तो सारे नखरे समझ आ जाएंगे..' माँ बड़बड़ाती हुई कमरे से बाहर आ जाती।
आज सुबह से ही घर मे रौनक थी। आज शैली को लड़के वाले देखने आ रहे थे। शैली भी आज किसी तरह उठकर माँ के साथ तैयार होकर किचन में हेल्प करवा रही थी। माँ साथ ही साथ उसे सीख भी देती जा रही थी।
शैली सुंदर तो थी ही । सबने उसे पसंद कर लिया और आने वाले तीन माह के बाद की शादी की तिथि भी निकाल ली गई। घर मे सभी खुश थे। लड़का भी इंजीनियर था। तो शैली को भी कोई आपत्ति न थी। मगर शैली की माँ को शैली को लेकर बहुत चिंताएं थी। सब पूर्वत ही रहा.. शैली के उठने के समय में कोई परिवर्तन नही था । बस अब माँ के डायलॉग चेंज हो गए थे..."तीन माह बाद शादी है ..भगवान जाने ये लड़की क्या करेगी ससुराल जा के...ससुराल वाले क्या कहेंगे...माँ ने यही सिखाया है ..देर से उठना.आदि..आदि..!
अब मात्र दो महीने ही रह गए थे विवाह के...माँ को कल रात से ही कुछ हरारत महसूस हो रही थी। शैली ने उनको आराम करने कहा और खुद रात का पूरा खाना बनाया। माँ मुस्कुराते हुए बोली --ऐसे ही कभी सुबह भी उठ जाया कर...आज 6 बजे शैली माँ के कमरे में जाकर ..माँ और पापा दोनो को चाय देने पहुँची..।
माँ हतप्रभ हो गई शैली को देखकर। और खुश होकर चाय लेते हुए बोली---"आज ये उल्टी गंगा कैसे बह रही है"...शैली ने मुस्कुराते हुए कहा---"अब तो मुझे ससुराल जाना है न! शैली उदास होते हुए डबडबाई आंखों से बोली....वहां माँ थोड़े होगी मेरे नखरे उठाने के लिए...फिर मां की गीली आंखे देख कर परिहास करते हुए कहा...उठूंगी नही तो लोग क्या कहेंगे..माँ ने कुछ सिखाया ही नही..माँ की ही तरह उनके बोल बोलकर वह हंस पड़ी और हंस पड़े पापा और माँ दोनो ही।

सच तो है... एक मायका ही तो है.. जहां वह बेटी बनकर रहती है... ससुराल में उसे बहुत सारी पदवी मिल जाती है पग रखते ही..बहु, मामी, चाची,ताई... और भी न जाने क्या-क्या...पर नही बन पाती कभी भी वो..ससुराल में एक बेटी।

मीना गोपाल त्रिपाठी