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मैं, टीपूँ और परी…. भाग-५
हम दोनों बातें करते जैसे-जैसे नज़दीक जा रहे थे, मेरी धड़कन पता नहीं क्यों बड़ रही थी। वैसे भी आज दिन खिला हुआ था और दूर-दूर तक सब साफ़-साफ नज़र आ रहा था। परी का हाथ मेरे हाँथो में था और मुझे इसका एहसास भी हो रहा था, लेकिन! मेरी चिंता तों टीपूँ की ओर बढ़ रही थी । मुझे यह भी चिंता थी कि परी के घर वाले परी की फ़िक्र कर रहे होंगे और कहीं मेरे घर वालों को यह ना बोल दे, कि परी और मैं पहाड़ी की ओर गये हैं ।

टीपूँ हमें कहीं नहीं मिल रहा था। परी मुझसे बार-बार यहीं पूँछ रही थी, कि हम किसको ढूँढ रहे हैं और यह रोटी किसके लिए हम लाये हैं। मैं परी की बातों को अन-सुना कर रहा था। और मेरे मुँह का रंग उड़ चुका था, क्योंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि टीपूँ बिना रोटी के रहा हो। मैं आगे-आगे और परी मेरे पीछे-पीछे! पहाड़ी की एक तरफ़ थोड़ा मैदानी इलाक़ा था मैंने परी को बोला कि थोड़ा इस तरफ़ हम देखते है। परी मेरा हाँथ पकड़ कर बोली पहले यह बताओ? कि हम ढूँढ किसको रहे हैं। मेरी आँखें नम हो गई और मैंने मेरे टीपूँ के बारे में सब कुछ बताया परी को , और वो बोली कोई बात नहीं हम चलते इस तरफ़ चिंता ना कर मिल जायेगा तेरा टीपूँ…..

उसने मेरा हाँथ पकड़ा और मैदानी इलाक़े तरफ़ ले गई, मैं इधर-उधर देख ही रहा था! कि मैंने टीपूँ की आवाज़ सुनी और इक दम पीछे देखा तो टीपूँ भाग कर आ रहा था और परी भी इतनी खुश नज़र आ रही थी कि जैसे कि उसका पप्पी (कुत्ता) ही भाग कर आ रहा हो…..

टीपूँ ने मेरे ऊपर छलांग लगाई और मेरी बाँहों में आ गया। मैंने उसको चूमना शुरू कर दिया और फिर उसको डाँट भी लगाई, बाद में परी ने उसको रोटी खिलाई और टीपूँ पाँच मिनट में पूरी रोटी खा गया। हम थोड़ा समय टीपूँ के साथ खेले और फिर टीपूँ को छोड़कर हम वापस घर को आने लगे, पर परी सिर्फ़ मेरी तरफ़ ही देख रही थी और वो कुछ ना कुछ सोच रही थी मैंने पूछने की कोशिश भी की थी, लेकिन उसने कहा कुछ नहीं है। चलो हम घर को चलते हैं नहीं तो पापा-मम्मी जी हमारी चिंता करेंगे……

हम दोनों पहाड़ी से नीचे आ रहे थे और परी का हाँथ मेरे हाँथ में था और अब मुझे फिर कुछ एहसास हो रहा था….

कहानी आगे भी है……..

© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻