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किसका गुनाह ?
बाल मनोचिकित्सक होने के बावजूद ख़ुद के मन के अंतर्द्वंद को जैसे मैं शांत ही नहीं कर पा रही हूं। यह सोच कर व्यथित और आश्चर्यचकित हूं कि हम ऐसी कौन सी मृगतृष्णा के पीछे अंधाधुंध भाग रहे हैं कि हमारे ख़ुद के बच्चे हमसे छूट रहे हैं?

छोटे बच्चों द्वारा पोर्न देखने की लत, ऑनलाइन गेम की लत, उनका यौन शोषण, उनके द्वारा यौन शौषण और आत्महत्या और हत्या परिणाम के रूप में;

छोटे छोटे बच्चों से रील बनवाना, उन्हें इसका आदि बना देना, एडल्ट कंटेंट का ध्यान ना रखना, बच्चों की ब्राउज़िंग हिस्ट्री चैक नहीं करना फिर इस बात पर रोते-बिलखते हुए उनके द्वारा किए गए अपराधों पर काउंसलिंग लेने आना कि, "हमारा बच्चा नौ बरस का है और पोर्न देखने लगा है, इसने इसकी बहन के साथ..." आप पर एक्शन लिए जाने काबिल बेहूदा हरकत है और अवश्य लिया जाना चाहिए।

पिछले दिनों ऐसे ही केस की भरमार रही। एक सेशन, में से एक ने मुझसे पूछा कि, "आठ नौ बरस के बच्चे पोर्न के आदी हो गए लॉकडाउन में और इसी उम्र के तीन बच्चों द्वारा अपनी बहन (रिश्ते में भी) के साथ दुष्कर्म के केस आए और आते ही जा रहे हैं। इस उम्र में बच्चा समझता क्या है? (मैं मनोविज्ञान के सेशन लेती हूँ, वहाँ की बात है)

देखिए, सवाल ये नहीं कि इस उम्र में बच्चा समझता क्या है! बात ये है कि इसी उम्र से तो बच्चा सब कुछ समझना चाहता है। नहीं, उसे नहीं पता है कि पोर्नोग्राफी क्या है, किंतु उसे ये पता है कि इसे देखने के बाद उसे भी ये करना है। उसे अब इसकी भूख लगी है जैसे उसे खाने की लगती है।

जैसे आप रोटी खाते हैं, पानी पीते हैं वैसे ही सेक्स भी एक भूख है, ज़रूरत है। पढ़ा होगा ना बचपन में!

अब सेक्स का मनोविज्ञान कैसे काम करता है!...