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पंडुक पक्षी का जोड़ा, सत्य कथा
एक पंडुक पक्षी का जोड़ा, छत की सीढ़ियों वाले कमरे में घोंसला बना कर रहता था ।
घोंसले में दो अंडे भी थे, हम सोचा करते जल्द ही ये दो से चार हो जाएंगे ।
एक दिन शाम को घोंसले में बिल्ली का आक्रमण होता है, घोंसला बिखर जाता है, अंडे नीचे गिर कर टूट जाते हैं, एक तो उड़ जाता है, दूसरे को बिल्ली दबोच लेती है, लेकिन किसी प्रकार छूट कर घायल अवस्था में आकर मेरी गोद में गिर जाता है ।
मैंने देखा दो तीन जगह से थोड़ा थोड़ा खून रिस रहा था, उसका प्राथमिक उपचार कर उसे एक जाली के अंदर बंद कर दिया कि सुबह जैसा उचित होगा किया जाएगा ।
सुबह देखा तो ऐसा लगा कि वह बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है । उसे उठा कर बाहर ले आता हूँ, वह बार-बार पकड़ से छूटना चाह रहा था, अतः उसे आजाद कर दिया ।
परंतु यह क्या - होनी तो कुछ और थी, उसकी मौत उसकी प्रतीक्षा कर रही थी ।
ज्योंही वह उड़ा, सामने पेड़ से एक बाज झपट्टा मार कर उसे ले उड़ा, उसकी इहलीला समाप्त हो गई ।
हम आवाक खड़े सोच रहे थे, शायद मौत पूर्णावधि की प्रतीक्षा कर रही थी ।
परंतु उसका जोड़ा ?
उसकी कथा अभी बांकी है -
जलता विरह की ज्वाला में,
आता है रोज वह मूक पंडुक पक्षी,
वहाँ, जहाँ खोया था, उसका जोड़ा ।
नजरें घुमा कर देखता है मुझे,
मेरी ही गोद में तो गिरा था जोड़ा इसका ।
मैं सोचने लगता हूँ,
क्या स्वार्थ, क्या देता होगा इसे,
जोड़ा इसका ?
स्वतंत्र दाना चुन कर ही तो खाते थे दोनों ।
फिर क्यों ?
यह प्रेम ही तो है,
जो खींच लाता है उसे, उस स्थान पर,
जहाँ खोया था जोड़ा उसका,
और टुकटुक देखा करता है,
इधर-उधर ।
© Nand Gopal Agnihotri