...

33 views

प्रेम, विवाह और फिर प्रेम


वो कहते हैं न कि किसी का सच्चा प्रेम अगर किसी को आजीवन मिल जाता है तो इसका मतलब है कि या तो वो चमत्कार है या प्रेम विवाह। शायद 1% लोग असहमत हो जाएं यहां मुझसे। पर मेरे हिसाब से वो 1% लोग ही चमत्कार की श्रेणी में आते हैं।
एक स्त्री या पुरुष बचपन से जवानी तक जाने कितने लोगों से मिलता है, कितनी चीजें देखते हैं। कितनी बातें, कुछ लोग पसंद आते हैं। जाने अनजाने किसी न किसी से प्यार हो ही जाता है।
फिर अचानक ही वो सुनहरा पल चला जाता है और सामाजिक जिम्मेदारियों और दिखावे के चक्कर में खुद को भुला कर, खुद को पूरा रिफ्रेश या रिबूट करके शादी के लिए तैयार करते हैं। घरवालों ने रिश्ता देखा। लड़का अच्छा है, ऐसा किसी मौसा जी ने या दूर की चाची ने बताया होता है।
अब ये अच्छा की परिभाषा क्या होती है उसपर बात नहीं करूंगा क्योंकि आप सबने उसका जीता जागता उदाहरण देखा होगा अगर आप शादीशुदा हैं तो। धीरे धीरे आपको पता चलता है कि आपकी पसंद जो आपको बहुत पसंद थी, किसी के लिए बकवास है। आपकी जिस पसंदीदा फूल से आपका प्यार आपका दिल बहलाता था, उससे आपके जीवनसाथी को एलर्जी है। आपको हॉरर फिल्में पसंद है तो उसे कॉमेडी। आपको तीखा पसंद है तो उसे मिर्च से नफरत। फिर शुरू होता है दौर समझौते का। इसी दरम्यान आप माँ या बाप बन जाते हो। और समस्या 4 गुनी बढ़ जाती है।

ऐसे में खुद की खुशी और चाहत को पोटली में बांध कर आप अलमारी के कोने में कहीं रख देते हो। क्योंकि वही चाची और मौसा, यहां तक कि आपके अपने माता पिता भी शादी का हवाला देकर जिम्मेदार बना देते हैं। तलाक के बारे में तो सोचना भी मत। शर्मा जी, मिश्रा जी, लाला जी क्या कहेंगे। बड़ी बदनामी होगी। और फिर तुझसे शादी कौन करेगा? और पता नहीं क्या क्या।
तो अंदर ही अंदर खुद का अंतिम संस्कार कर के जब आप एक रोबोट की तरह जीना शुरू कर देते हैं तब जाने कहीं से एक अनजाना इंसान आ जाता है। फिर से जान फूंक देता है वो आपमे। अचानक से आपकी पसंद फिर आपकी पसंद बन जाती है। आप जीना शुरू करना चाहते हैं पर ये विवाह का बंधन। उफ्फ्फ ये आपको धोखेबाज़ बना देता है। अंतर्द्वंद से लड़ते हुए कुछ हार जाते हैं और कुछ जीत जाते है। जीतने वालों में से ज्यादातर अक्सर पकड़े जाते हैं। और धोखेबाज कहलाते हैं। कुछ कहने पर जवाब मिलता है कि शादी के बाद भी प्यार हो सकता है क्या? शर्म नहीं आयी तुम्हें ऐसी हरकत करते हुए। नाक कटवा दी। पूरी इज्जत मिट्टी में मिला दी। और ये अंत न होने वाले लांछन आप सुनते रहते हैं।

सवाल ये है कि आखिर क्यों खुश रहने का हक़ नहीं सबको। उसे जो चाहिए था वो क्यों न पाए। सबकी बात मान कर शादी की थी न। फिर क्यों समझौता कर कोई छोटी छोटी बात पर। क्या दूसरा जीवन मिलेगा अपने अरमान पूरे करने को??? ऐसे जी कर क्या आत्मा संतुष्ट हो पाएगी मरने के बाद?
ऐसा नहीं कि मैं विवाहोत्तर संबंधों की अगुवाई कर रहा हूँ। धोखा हमेशा धोखा ही रहता है। लेकिन इस नाम पर जिंदगी से दूर हो जाना कितना सही है। समाज इस बंधन में बांध कर गायब क्यों हो जाता है। और इसके बाद बस समझौते का रास्ता ही क्यों बचता है।
कुछ सवाल हैं मेरे। किसी के पास जवाब, टिपण्णी, सहमति और असहमति के विचार या कोई सुझाव हो तो निःसंदेह ज्ञात कराएं।



© शैल