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नजरिया
सीम मैडम को हमेशा एक बात कचोटती थी कि उनकी पड़ौसी वंदना जो एक नर्स थी केन्द्र सरकार के अस्पताल में, सरकारी अस्पतालों के व्यवस्था पर हमेशा निंदा किया करती थी। सीमा मैडम स्वयं सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी अतः उन्हें ये बात अंदर ही अंदर दुःख पहुंचाता था।
उन दिनों भयानक महामारी फैला हुआ था।सभी डाक्टर,नर्स तन मन से सेवा में लगे थे। सरकारी अस्पतालो को केन्द्र बनाए गए। नर्स वंदना अपने रूटिन कार्य कर रही थी।
बात टीकाकरण का आई। ऐन तैन प्रक्रिया द्वारा उन्होंने अपने घर के सदस्यों का टीकाकरण करवा लिए। चूंकि उनके अस्पताल को टीकाकरण केंद्र नहीं बनाया गया था अतः न उनको महामारी के मरीजों का सामना करना पड़ा न ही किसी तरह का कोई परेशानी हुई। सीमा मैडम भी मौके की तलाश में थी। उन्होंने बातें ही बातों में यह अहसास दिला दिया कि कोई भी संस्था को बदनाम करने से पहले ये ध्यान रखें कि हर इंसान एक जैसे नहीं होते। सरकारी संस्थाओं में भी अच्छे कार्य करने वाले रहते हैं। अपनी नजरिया बदलने की आवश्यकता है। आज वही संस्था के कार्यरत लोग अपने घर द्वार छोड़ कर तुम्हारे घर को बचा रहे।
सभी संस्था अपने स्थान पर महान है।
बदलाव की दौर है। नज़रिया बदलिए। काम करने वालों की प्रशंसा अपेक्षित है।