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ताड़ - तुड़या भंवरा (१)...
' ताड़ - तुड़या भंवरा' को पुरे पार्क में घुमाते .... या यूं कहिए कि मानों हवा में तैरता हुआ देखना अब मेरी मनपसंद गतिविधी हो गई ।

वह तेजी से, उछलता हुआ, कभी इस ओर, कभी उस ओर... किसी भी ओर मुड़ जाए यह उसकी मर्जी पर निर्भर करता है... कभी बैडमिंटन खेलते हुए लोगों को खड़ा होकर शटल को ताकने लगता ...शटर गिरते ही उठा लेता,अब लगता है कि खेल रुक गया..उसके हाथ से शटल कैसे ले ?..पर यह क्या ?....वह खुद ही खेलने वालों को दौड़कर शटल दे आता...
यह सिलसिला कुछ देर चलता है...पर हवा एक स्थान पर ज्यादा देर तक कहां ठहरतीं है...अचानक एक गेंद उसका ध्यान आकृष्ट कर लेती है...वह हाथ की बल्ले से गेंद को एक मंझे हुए क्रिकेटर की तरह खेलने में व्यस्त हो जाता है... कुछ पल ही... फिर वही हवा की तरह किसी और ओर बढ़ लेता है....

जैसे सब उसके अपने ही हों.. परायेपन का अहसास मानो उसे छू भी नहीं गया है सब कुछ अपना ही है , "वसुधैव कुटुम्बकम् "यह विश्व ही मानों उसका परिवार है ।

अब मुझे उत्सुकता सी होने लगी है उसके बारे में जानने की... क्या नाम होगा उसका ?...किसके साथ पार्क में आता होगा ?...

अच्छा ! अब यह पहेली सिर्फ मेरी ही नहीं रही बल्कि मेरी पत्नी और बेटी की भी थी जो उससे उतना ही लगाव महसूस करने लगे थे जितना कि मैं । उनको "ताड़ - तुड़या" नाम पहले पहल तो समझ में नहीं आया पर अर्थ जानने के बाद उन्हें भी यह नाम बेहद पसंद आया।

अब तक कुछ दुरी से ही यह सब चलता रहा था पर अब शायद कुछ करीब जाने का वक्त आ गया है...
एक बारगी तो मन में आया कि जाकर गोंद में उठा लूं पर फिर तर्क ने मना कर दिया.... कई खौफनाक तस्वीरें भी सुझा दीं... मनमोहक ख्याल ही सही पर, त्यागना पड़ा ।

क्रमशः
© aum 'sai'