...

5 views

सब ठीक है .... ??????
भीड़ का हिस्सा हो कर भी, भीड़ में तन्हा, देख रही है आँखे सब कुछ, परंतु शायद कुछ नहीं दिख रहा, शोर बहुत है आस पास पर अंदर का शोर जैसे उसे कुछ और सुनने ही नहीं देता l आस पास का माहौल और अनंत शोर जैसे उनके ऊपर कोई असर नहीं डाल रहा था l सांस लेते शरीर में जैसे प्राण है ही नहीं, आँखे भावविहिन, शून्य में खोयी, l बस एक चाबी लगे यांत्रिक खिलौना सा चलता फिरता काम करता हर इंसान l
किसी से नज़रे मिले तो भी कोई प्रतिक्रिया नहीं, किसी की मुस्कुराहट का यदि प्रत्युत्तर देना पड़े तो लगता है जैसे होंठों को बहुत बड़े कष्ट में डाल दिया हो l ऐसे ही यांत्रिक बेजान शरीर आपको हर रास्ते, हर चौराहे, हर मोड़, और सच कहूँ तो आपको अपने घर में भी मिल जायेंगे l कभी भी, कही भी, किसी से भी उसका हालचाल पूछिये तो नपा तुला एक ही उत्तर मिलता है " सब ठीक है " l हैरानी की बात है कि हम सभी इस उत्तर को यथावत ले भी लेते है l
क्या कभी ये उत्तर देते व्यक्ति के शब्दों के प्रभाव, उनकी सत्यता, उसके चेहरे की शून्यता या उनके चेहरे के भावों पर कोई गौर करता है, " नहीं " I
सत्य तो ये है कि हर मन में दबे हुए कई भावों, पिडाओं, चिड़चिड़ाहट, नाराज़गी, बेबसी , जैसे चित्कार करती है कि मैं ठीक नहीं हूँ l क्यों नहीं किसी को वो दिख रहा जो मैं अब छिपाता भी नहीं l क्यों मेरे एक ऐसे झूठे और ठंडे उत्तर को लोग सुना अनसुना कर देते है l
एक बार आप कोशिश करके तो देखिये, किसी के " ठीक हूँ " कहते समय उसके चेहरे और आँखों में रुके शब्दों को पढ़ने की l
सत्य तो ये है,कि सभी को अपनी लडाई खुद ही लड़नी होती है लेकिन जब इंतिहा हो जाती है और कोशिशे बेमानी होने लगती है तो इंसान खुद में सिमटता जाता है l उसका सब पर से विश्वास उठ जाता है l छोड़ देता है खुद को नियति पर l लेकिन उसके अंदर चल रहे ज्वारभाटे से उत्पन्न जख्मों को यदि किसी के साथ की मरहम शांत कर सकती है तो वही व्यक्ति एक बार फिर पूरे जोश से हर चुनौती का सामना करने में खुद को समर्थ पाता है l
बात है बहुत छोटी सी, किंतु है गहरी l एक बार सोचियेगा जरूर, और अगली बार जब ये उत्तर सामने आये तो उस व्यक्ति के अंतर्मन को टटोलने की एक कोशिश तो अवश्य कीजियेगा l


© * नैna *