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ishaq wali kahani Part-5
इश्क और रोग मे बहुत समानताएं होती हैं । रोग के लक्षण साफ दिखने पर भी तसल्ली के लिए मेडिकल टेस्ट होना बहुत जरूरी होता है । उसी तरह इश्क मे भी जब तक “हाँ” वाला स्पष्टीकरण नया मिल जाए , मामला लटका ही रहता है , फिर चाहे “सिग्नल” साफ मिल रहे हों ।
मसलन , शिव और शालिनी की नजरें मिल चुकी थीं । शालिनी मुस्कुरा भी चुकी थी । पर शिव को अभी भी ये सब “महज एक इत्तेफाक” वाली फीलिंग ही देता था ।
अब शालिनी की तरफ की बात जान लेते हैं । शिव उसे अच्छा लगने लगा था और शिव को बीते दो बार मिलने के बाद हद से ज्यादा नर्वस देखा था तो शक यकीन मे बदलना तो चाहता था , पर फिर वही इकरार होने तक इनकार हो जाने की संभावना थी । इसीलिए उसने पढ़ने का बहाना भी बनाया था पर वहाँ पर अंग्रेजी बीच मे आ गई थी । वैसे उसे खास फरक पड़ता नहीं पर शिव की मम्मी के सामने दुबारा जाने की हिम्मत भी नहीं हुई । कई बार छत के चक्कर लगाए पर शिव को देखते ही वो वहाँ से हट जाती ।
बस उस शाम ऐसा नहीं हुआ था । उसके बाद बहुत कुछ बदल गया था । ये वो उम्र थी जब इश्क मे इंसान खोया खोया रहता है । सबसे बड़ी बात ये...