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अपना घर
ज़िंदगी में हर दिन और रात नये लगते हैं, रोज़ कुछ नया अघटित घट जाता है! चाहे मनचाहा हो या न हो!

यूँ तो परिधि की शादी को 7 साल बीत गए थे मग़र वैवाहिक जीवन में सुख के पल कभी नहीं आये, वो हमेशा उम्मीद करती, भगवान से प्रार्थना करती कि सब कुछ ठीक हो जाए!

समाज के नज़रिए से देखें तो सब ठीक था, ससुर का दिया फ्लैट, पति शेखर, सरकारी डॉक्टर, अच्छी तनख़्वाह और प्यारा सा बेटा! माँ शादी से ठीक 2 महीने पहले स्वर्ग सिधार गयीं थी और पिताजी कुछ महीने पहले ही, दुःख सुख बाँटने वाला अब कोई नहीं था!

पति बहुत शराब पीते थे, चिकित्सक होते हुए भी बुरी तरह से लत लगी हुई थी!

नशा करने के बाद, घरेलू हिंसा, उत्पात अब हर दिन और हर रात का सिलसिला था!

सहती जा...